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जाती प्रमाण के विषय में ।। Sansthanam.


जय श्रीमन्नारायण,

Bhagwat Pravakta - Swami Dhananjay Maharaj.

न जारजातस्य ललाटशृंगं कुल प्रसूतेर्न च भालचन्द्र: !!

अर्थात:- जो नीच कुल का है, उसके मस्तक पर सिंग नहीं है ! और जो उच्च कुल का है, उसके मस्तक पर चन्द्रमा नहीं है ! उच्च तथा नीच कुल का प्रमाण व्यक्ति की वाणी ही है ! जैसे-जैसे मनुष्य की वाणी गिरती जाती है, वैसा-वैसा ही जतिकुल का प्रमाण जानना चाहिए !!


अर्थात:- १.आचार, २.विनय, ३.विद्या, ४.प्रतिष्ठा, ५.तीर्थदर्शन, ६.धर्मकर्म में प्रीति, ७.उत्तमवृत्ति, ८.तप (धर्मानुष्ठान), ९.दान, ये नव लक्षण उत्तम कुल का, कुलदीपिका में लिखा है !!


अर्थात:- कितने हि विशाल अथवा बडा कुल क्यों न हो, विद्या (अर्थात सा विद्या या विमुच्यते, विद्या वही है, जो सद्ज्ञान अथवा सन्मार्ग दिखाए, क्योंकि मुक्ति इसी से संभव है) से हीन व्यक्ति का कोई आस्तित्व  नहीं है ! और कितना ही निम्न कुल क्यों न हो, विद्वान् है, तो उसकी देवता भी बड़े शौक से पूजा करते हैं !!

मैं, सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ, की हमारे देश में जातियां थी, लेकिन जातीयता नाम की कोई वस्तु न शुरू से था, और ना ही कभी भी रहा है ! आज कुछ विकृत मानसिकता के लोगों द्वारा जिस धर्म का प्रचार हुआ है, असल में हमारे धर्म का स्वरूप वो नहीं है !!

और आज जिस ज्ञान की चर्चा लोग करते हैं, वो असल में कोई ज्ञान वैसा नहीं होता ! ज्ञान बहुत ही सीधा शब्द है, और वो है, जानना - जानना ही ज्ञान है ! माँ-बाप की सेवा करनी चाहिए, ये ज्ञान है ! धर्म का आचरण करना चाहिए, ये ज्ञान है ! और यही ज्ञान मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करती है !!
!! नमों नारायणाय !!

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