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भारतीय संस्कार वाली नारी का महत्त्व !!





जय श्रीमन्नारायण,

दुनिया में तरह तरह के लोग रहते हैं,जिसमें हमलोग भी हैं,यहाँ तरह तरह के जीव, पशु - पक्षी, इन्सान,पेड़ - पौधे, लता - पता,सब कुछ है यहाँ,लेकिन सबमें श्रेष्ठ ईन्सान है,और ईन्सान में भी भारतीय संस्कार वाली नारी का बहुत महत्त्व शास्त्रों में बताया है !! ऐसी स्त्रियों के क्या लक्षण या कैसा कर्म होना चाहिए,भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं !!
अहिंसा सत्यवचनं सर्व भूतानुकंपनम् ! शमो दानं यथाशक्ति गार्हस्थ्यो धर्म उत्तमः !!
शुश्रूषन्ते ये पितरं मातरं च गृहाश्रमे !!
भर्तारं चैव या नारी अग्निहोत्रं च ये द्विजाः ! तेषु तेषु च प्रीणन्ति देवा इन्द्रपुरोगमाः !!
पितरः पितृलोकस्थाः स्वधर्मेण स रज्यते !
यथा मातरमाश्रित्य सर्वे जीवन्ति जन्तवः ! तथा गृहाश्रमं प्राप्य सर्वे जीवन्ति चाश्रमाः !!
अर्थात् भगवान महेश्वर कहते हैं कि -- देवी ! किसी भी जीव की हिंसा न करना,सत्य बोलना,सभी प्राणियों पर दया करना,मन और इन्द्रियों पर काबू रखना तथा अपनी शक्ति के अनुसार दान देना गृहस्थ - आश्रम का उत्तम धर्म है ! जो लोग गृहस्थाश्रम में रहकर माता-पिता की सेवा करते हैं,जो नारी पति की सेवा करती है तथा जो ब्राह्मण नित्य अग्निहोत्र-कर्म करते हैं, उन पर इन्द्र आदि सभी देवता, पितृलोक निवासी पितर प्रशन्न होते हैं एवं वह जीव अपने किए गए धर्माचरण रूपी कर्म के फल स्वरूप समस्त ऐश्वर्यों के साथ आनंद एवं प्रसन्नता पूर्वक इहलोक तथा परलोक में भी प्रतिष्ठित पद को प्राप्त करता है ! जैसे माता के सहारे ही समस्त जीव जीवन धारण करते है,ठीक उसी तरह सभी आश्रम तथा सभी जीव गृहस्थ्य आश्रम का आश्रय लेकर ही जीवन यापन करते हैं !!




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{महाभारत अनुसासन पर्व/अध्याय १४२}

!! नमों नारायणाय !!

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