पद्मिनी एकादशी हिंदी में व्रत विधान एवं कथा सहित ।।
पद्मिनी एकादशी हिंदी में व्रत विधान एवं कथा सहित ।। Padmini Ekadashi Vrat Katha And Vidhan.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, जब मलमास लगता है तो मलमास के महीने को अधिक मास भी कहते हैं । जो एकादशी अधिकमास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है उसे पद्मिनी एकादशी कहते हैं । इसे कमला एकादशी भी कहा जाता है ।।
यह एकादशी हर वर्ष नहीं आती बल्कि यह अधिकमास में ही आती है । जिस साल अधिकमास लगता है, पद्मिनी एकादशी भी उसी साल आती है । यही वजह है, कि इस एकादशी को अधिकमास एकादशी भी कहा जाता है ।।
इस एकादशी को कमला या पद्मिनी एकादशी भी कहा जाता है । इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा तो होती ही है, साथ में भगवान शंकर और माता पार्वती कि पूजा भी होती है ।।
पद्मिनी एकादशी करने वाले को अपार धन लाभ और स्वास्थ्य का आर्शीवाद मिलता है साथ ही उनके समस्त शत्रुओं का नाश होता है । भगवान विष्णु ने महारानी पद्मिनी को पुत्र का वरदान दिया था ।।
ऐसे में जिन्हें कोई संतान नहीं है, वह यदि पद्मिनी एकादशी व्रत रखें तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति अवश्य ही होती है, इसमें कोई संसय नहीं है । मलमास के महीने को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है ।।
यह महीना भगवान विष्णु को समर्पित होता है । इस महीने में भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से ना केवल मनचाही इच्छाएं पूरी होती हैं, बल्कि जाने-अनजाने में किए गए सभी पाप भी नष्ट हो जाते हैं ।।
इसी महीने में पद्मिनी एकादशी का आता है इसलिए यह एकादशी और भी शुभ बन जाती है । पद्मिनी एकादशी आमतौर पर 3 साल में एक बार आती है इसलिए इसका खास महत्व होता है ।।
पद्मिनी एकादशी के महत्व के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था । मलमास में अनेक पुण्यों को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है । इसका व्रत करने वाला मनुष्य अक्षुण्ण कीर्ति को प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है ।।
देवदुर्लभ इस व्रत को सभी को अवश्य करना चाहिये तथा इस दिन जरूरतमंदों को तिल, वस्त्र, धन, फल और मिठाई आदि का दान करना चाहिए । जो लोग व्रत नहीं भी करते हों वो भी इन चीजों का दान कर सकते हैं । दान करने से भी व्रत का फल प्राप्त हो जाता है ।।
मित्रों, किसी भी एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी के दिन पारण किया जाता है । पारण सदैव सूर्योदय के बाद ही करना चाहिये । यह ध्यान रखें, कि पारण द्वादशी तिथि में ही किया जाए ।।
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है । प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं । जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है ।।
मल मास जिसे अधिक मास या पुरूषोत्तम मास भी कहा जाता है । इस मास में दो एकादशी आती है जिसमें अत्यंत पुण्य दायिनी पद्मिनी एकादशी भी एक है ।।
पद्मिनी एकादशी भगवान को अति प्रिय है । इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला विष्णु लोक को जाता है । इस व्रत के पालन से व्यक्ति सभी प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्चर्या का फल प्राप्त कर लेता है ।।
यह एकादशी समस्त पापों का नाश कर देती है । त्रेता युग में हैहय वंश में कृतवीर्य नाम के राजा महिष्मतिपुरी में राज्य करते थे । इनकी एक हजार पत्नियां थीं किन्तु सन्तान कोई नहीं थी, जो राज्य संभाल सके ।।
देवताओं, पितरों एवं साधुओं के निर्देशानुसार विभिन्न व्रतों के अनुष्ठान करने से भी उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई । तब राजा ने तपस्या करने का निश्चय किया । वे अपने मंत्री को सम्पूर्ण राज्य-भार देकर, राजसी वेष त्याग कर तपस्या करने चले गए ।।
महाराज के साथ उनकी बड़ी रानी, जो की इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न महाराज हरिश्चन्द्र की कन्या पद्मिनी थी उन्होंने भी उनका अनुसरण किया । उन दोनों ने मन्दराचल पर्वत पर जाकर दस हज़ार वर्ष तक घनघोर तपस्या की ।।
आप कृपा करके मुझे किसी ऐसे व्रत का उपदेश दीजिए कि जिसके पालन करने से भगवान श्रीहरि प्रसन्न हो जाएं एवं हमें राजचक्रवर्ती की तरह कीर्तिमान श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति हो सके ।।
अनुसूया देवी जी के कथनानुसार रानी पद्मिनी ने विधिपूर्वक एकादशी व्रत का पालन किया । तब भगवान केशवदेव गरुड़ पर सवार होकर रानी के समीप आए और उन्होंने रानी से वरदान मांगने के लिए कहा । रानी ने बड़ी श्रद्धा से भगवान की स्तुति-वन्दना की तथा पतिदेव की अभिलाषा पूर्ण करने के लिए निवेदन किया ।।
भगवान ने कहा- हे भद्रे! मैं तुम पर अति प्रसन्न हूं । अधिक मास को मेरे नाम पर ही पुरुषोत्त्म मास कहते हैं । इस पवित्र महीने के समान अन्य कोई महीना मेरा प्रिय नहीं है । इस महीने की एकादशी भी मुझे अत्यन्त प्रिय है ।।
आप लोगों ने इस व्रत का सही विधि-विधान से पालन किया है । अतः आपके पतिदेव को उनका अभिलषित वरदान अवश्य दूंगा । फिर भगवान राजा के पास गये और राजा को इच्छानुसार वरदान देकर भगवान अन्तर्हित हो गए ।।
कालान्तर में उसी रानी के गर्भ से महाराज कृतवीर्य का पुत्र कार्तवीर्यार्जुन का जन्म हुआ । तीनों लोकों में कार्तवीर्यार्जुन के समान कोई बलवान नहीं था । इसी कार्तवीर्यार्जुन ने रावण को युद्ध में पराजित कर बन्दी बना लिया था ।।
पद्मिनी एकादशी का व्रत विधान ।।
एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजन करें । निर्जल व्रत रखकर पुराण का श्रवण अथवा पाठ करें । रात्रि में भी निर्जल व्रत रखें और भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें ।।
रात्रि में प्रति पहर भगवान विष्णु और शिव की पूजा करें । प्रत्येक प्रहर में भगवान को अलग अलग भेंट प्रस्तुत करें । जैसे प्रथम प्रहर में नारियल, दूसरे प्रहर में बेल, तीसरे प्रहर में सीताफल और चौथे प्रहर में नारंगी और सुपारी निवेदित करें ।।
द्वादशी के दिन प्रात: भगवान की पूजा करें फिर ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें इसके पश्चात स्वयं भोजन करें । इस प्रकार इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य जीवन सफल होता है । व्यक्ति जीवन का सुख भोगकर श्री हरि के लोक में स्थान प्राप्त करता है ।।
मित्रों, एकादशी व्रत का प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य और मन पर भी पड़ता है । एकादशी खासकर स्वास्थ्य संतुलन का भी एक महत्वपूर्ण आधार है । एकादशी व्रत करने के तरीकों और खोलने के तरीके से स्वास्थ्य संतुलित होता है ।।
एकादशी व्रत नियमित रूप से करने से जिंदगी में कभी कोई बीमारी प्रभावित नहीं करता है । एकादशी व्रत करने से शरीर और मन को शक्ति मिलता है एकादशी व्रत निर्जला और सजला भी किया जा सकता है ।।
इसमेँ निर्जला एकादशी ही सर्वोत्तम माना जाता है । परन्तु फलाहार के साथ भी एकादशी व्रत करने से फल कम नहीं मिलता है । एकादशी व्रत का मुख्य उद्देश्य भगवान के सान्निध्य से है । अधिकाधिक भगवन्नाम का जप, पूजन एवं सान्निध्य करना चाहिये इससे एकादशी का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है ।।
नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।
जय जय श्री राधे ।।
जय श्रीमन्नारायण ।।
जय श्रीमन्नारायण ।।
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