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दान के कितने अंग होते हैं तथा किसे दान करें ।।

दान के कितने अंग होते हैं तथा किसे दान करें ।। Dan Ke Kitane Ang And Kise Dan Kare.


जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, हमारे पूर्वज ऋषियों ने हर एक विषय पर अपना मत दिया है । क्योंकि दान एक बहुत ही अहम मुद्दा होता है । इसलिए अपने खून पसीने की कमाई को किस को दान करें । यह बहुत बड़ा प्रश्न है ?

आज हम शास्त्रानुसार दान के कितने अंग होते हैं तथा दान लेने का सही हकदार कौन है ? इस विषय में चर्चा करेंगे । तो आइए आज हम इसी विषय में चर्चा करते हैं ।।

मित्रों, जैसा की आप देखते हैं, आजकल कुछ लोग एक फोटो बनाते हैं, जिसमें एक तरफ शिव जी के मंदिर में वेस्ट होते हुए दूध को दिखाते हैं और वहीं दूसरी तरफ एक फोटो में एक गरीब बच्चा जो भूख से तड़पता हुआ होता है ऐसी तस्वीरें एक साथ करके दिखाते हैं ।।


अब ऐसे में हमें विचार करना है, कि वह दूध जो शिवलिंग के ऊपर गिराया जा रहा है, वह बेकार है अथवा उस दूध का सही हक़दार भूख से तड़पता हुआ बच्चा है ।।

अगर भौतिक दृष्टिकोण से देखें, तो उस दूध का सही हक़दार वह भूख से तड़पता हुआ बच्चा ही नजर आता है । परंतु जब हम गहराई से विचार करते हैं, तो यह हमारे ऋषि यों का मत है, कि धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान शिव के शिवलिंग के ऊपर दूध से अभिषेक करना महान पुण्य का कर्म होता है ।।

अब इसमें दो बातें हैं, एक भौतिक दृष्टिकोण से प्रत्यक्ष दिखती हुई भावनाएं तो दूसरी तरफ धर्म । यहां बच्चे को दूध दे तो धर्म से विचलित होते हैं और शिवलिंग के ऊपर दूध चढ़ाएं वह बच्चा भूख से तड़प रहा होता है ।।

ऐसे में यह बहुत बड़ा धर्म संकट होता है ऐसी स्थिति में हमारे निर्णय लेने की क्षमता थम सी जाती है । ऐसी स्थिति में हम क्या करें ? यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है ।।


सर्वप्रथम हम दान के अंगों के विषय में जानते हैं । मुख्य रूप से शास्त्रानुसार दान के छः अंग होते हैं, तो आइये जानते हैं दान के उस छः अंगों के विषय में ।।

दाता प्रतिगृहीता च शुद्धिर्देयं च धर्मयुक् ।
देशकालौ च दानानामङ्गन्येतानि षड् विदुः ।।

अर्थ:- दाता (दान देने वाला), दान लेनेवाला (सुपात्र), पावित्र्य (शुद्ध भावना से), देय वस्तु (क्या किसको दे रहे हैं), देश (किस स्थान पर दे रहे हैं), और काल (किस समय दे रहे हैं) - ये छ: दान के अंग हैं ।।

ये तो हो गयी कि असल में दाता कौन है ? तथा किसे दिया जाय । साथ ही किस स्थान पर और किसे देना चाहिये एवं किस भाव से देना चाहिये । अब इसके अभिप्राय को समझने का प्रयत्न करते हैं ।।

मित्रों, शास्त्र कहता है, कि अपनी कमाई का 10 प्रतिशत दान करना चाहिए हर एक व्यक्ति को । ऐसे में 10% को कहां किसके ऊपर और किस प्रकार खर्च करना है ।।


शास्त्रानुसार 10 में से 5% बिल्कुल विशुद्ध कर्मकांड के ऊपर दान करना चाहिए । अपने स्वार्थ हेतु अथवा अपने कल्याण के निमित्त दैविय साधना में 5% धन का खर्च बिलकुल ईमानदारी से करना चाहिए ।।

बचे 5 प्रतिशत को साधु-संतजन जो तपस्वी हैं अथवा जो धर्म प्रचार में लगे हुए हैं एवं जो गरीब तथा बेरोजगार हैं अथवा विकलांग है, ऐसे लोगों के ऊपर अपना 5% दान करना चाहिए ।।

मंदिर में आप धर्म की भावना लेकर जाते हैं और कोई गरीब अगर वहीं बैठा है तो इसका मतलब है, कि वह वास्तव में लाचार नहीं है मजबूर नहीं है । बल्कि भीख मांगना उसका फैशन बन गया है और उसे ही वह कमाई का जरिया बना कर बैठा है ।।


इसलिए पहले तो इस तरह की उलझन एवं इस तरह कि बातों में फँसने से पहले आप अपने आप को देखिए, कि क्या ईमानदारी से आप अपनी आमदनी का दसवां हिस्सा दान करने को तैयार हैं ।।

दूसरी बात इस प्रकार की विकृत भावनाएं किसी मिशनरी के तहत हिंदुओं को भ्रम में डालने के लिए फैलाए जाते हैं । जिसे अज्ञानतावश बड़े से बड़े कुलीन लोग भी उनके झांसे में आकर इस तरह की विकृत बातों का भ्रामक प्रचार करने में लग जाते हैं ।।

इससे हमें बचना है और दूसरों को भी बचाना है । शास्त्रों में यह भी ति हर जगह लिखा है, कि गरीबों एवं लाचारों कि मदद करो । ध्यान रखें धर्म को इसी अनुसार करना है क्योंकि शास्त्रानुसार यही सही है ।।

नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।


जय जय श्री राधे ।।
जय श्रीमन्नारायण ।।

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