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जय श्रीमन्नारायण,

यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः ।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पंडितं बुधाः ॥ ( गीता अ.४.श्लोक.१९.)


अर्थ : जिसके सम्पूर्ण शास्त्रसम्मत कर्म बिना कामना और संकल्प के होते हैं, तथा जिसके समस्त कर्म ज्ञानरूप अग्नि द्वारा भस्म हो गए हैं, उस महापुरुष को ज्ञानीजन भी पंडित कहते हैं || १९ ||

भावार्थ:- बात तो पूर्ण सत्य है, लेकिन समझने वाली बात यह है, कि जिसके कर्म बिना कामना और संकल्प के होते हैं -- कैसे कर्म ? शास्त्र सम्मत कर्म | दूसरी बात है, जिसके समस्त कर्म ज्ञान रूपी अग्नि में जलकर भस्म हो चुके हों | भाई जी ज्ञान रूपी अग्नि और समस्त कर्म जलकर भस्म हो जाय -- ये कुछ अंदर नहीं बैठ रहा है - जरा स्पष्ट करें ||

ये विषय तो स्पष्ट ही है, समस्त कर्म अर्थात कोई भी कर्म -- मतलब -- सुबह से शाम तक, सोने से खाने तक, लैट्रिन से लेकर बाथरूम तक, फैक्टरी कि नौकरी से लेकर श्रीमती जी के आज्ञा पालन तक -- अर्थात कोई भी कर्म मतलब कोई भी कर्म - सब कुछ -- शास्त्रसम्मत हो -- मतलब जिस कर्म कि इजाजत शास्त्र नहीं देते वो कर्म नहीं करना --- यही ज्ञान है ||

और ये ज्ञान रूपी अग्नि जिसके अंदर समा जाय अर्थात आ जाय -- फिर इस अग्नि से सम्पूर्ण कर्तब्य कर्म जलकर भस्म हो जाते हैं ||

फिर वो पुरुष नहीं रह जाता -- बल्कि -- महापुरुष -- हो जाता है | और फिर बड़े से बड़ा ज्ञानी भी उसके सन्मुख नतमस्तक हो जाते हैं अर्थात भगवत्स्वरूप हो जाता है ||

नारायण आप सभी मित्रों कि रक्षा सदैव करें ये हमारी प्रार्थना है, वेंकटेश स्वामी से |||

|| नमों नारायणाय ||

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