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परम् ज्ञान क्या है ? Param Gyan Kya Hai ?


By Swami Dhananjay Maharaj.

जय श्रीमन्नारायण,

सभी जीवमात्र के भीतर स्वाभाविक ही एक ज्ञान (विवेक) होता है । यह ज्ञान पैदा नहीं होता, क्योंकि पैदा होने वाली हर वस्तु नश्वर होती है । और यह ज्ञान नष्ट नहीं होता, इससे प्रमाणित है, की ज्ञान कभी किसी के पास पैदा नहीं होती, अपितु स्वयं में सन्निहित होती है ।।

ज्ञान का अर्थ होता है, जानना, किसी भी तरह का अनुभव ही ज्ञान को जन्म देता है । जैसे आपने ये जाना की शेर खूंखार होता है, तो उसे प्यार से वश में करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए ।।

हां अगर पैदाइसी किसी शेर को आप पालतू बनाते हैं, तो भी हर समय आपको उससे सतर्कता बरतनी चाहिए, यही ज्ञान है । क्योंकि उसका स्वभाव कुछ देर के लिए शांत अथवा अनुशीलन से भरा हो सकता है, सदा के लिए वह ऐसा नहीं है ।।

अब इस ज्ञान को जाग्रत कैसे करें ? तो प्रथम तो इसकी जानकारी देने वाला गुरु चाहिए । दूसरा प्रैक्टिकली आपको अनुभव करवाए, ऐसी व्यवस्था का आश्रय लेना चाहिए । वैसे यह ज्ञान स्वाभाविक तौर पर आपके अन्दर है, ही । फिर भी इसे जाग्रत करने का प्रयत्न (निष्ठा) और मार्गदर्शक (गुरु) की आवश्यकता होती ही है ।।

अक्सर आप या हम जिस परम ज्ञान की चर्चा सुनते हैं । वो परम ज्ञान भी इसी प्रयत्न से प्राप्त होता है । उस परम ज्ञान को प्राप्त करने का कोई अन्य मार्ग नहीं है । कोई गुरु आएगा, एक अंगुली स्पर्श करवाएगा, और हम परम ज्ञान को प्राप्त हो जायेंगें ।।

कदाचित अगर ऐसा होता भी होगा, तो आपके साथ नहीं होगा । क्यों, क्योंकि आप अकर्मण्य हैं, और किसी गुरु के भरोसे बैठे हैं । प्रयत्न तो हमें ही करना पड़ता है, और जब हमें ही करना है, तो फिर आज से ही क्यों न करें । हमारे कुछेक आचार्यों की मुर्खता से भरा उपदेश इस कदर हमारे लोगों के मन मस्तिस्क में बैठ गया है, की हम पूर्णतः अकर्मण्य होते जा रहे हैं ।।

इसका प्रमाण ये है, की आप किसी भी आचार्य की बात करें । तो एक ही राग अलापते हुए सुनेंगें,  की कोई परम तत्व है, और उसे जानना ही परम ज्ञान है । हम इसी चक्कर में वहीँ के वहीँ रह गए, और फौर्नर लोग इसी ज्ञान के बल पर कहाँ से कहाँ चले गए । ये हमारा दुर्भाग्य है, और इससे भी बड़ा दुर्भाग्य ये है, की आज भी ये प्रक्रिया बदस्तूर जारी ही है । कोई बदलने का प्रयत्न ही नहीं करता, और न ही उपदेश की पद्धति बदलती है ।।

 Swami Dhananjay Maharaj.
प्रकृति परिवर्तनशील है, दुनियां बदल रही है, हमारी आँखों के सामने सबकुछ बदल रहा है, और परिवर्तन ही इस संसार का अकाट्य सिद्धांत है, फिर हम क्यों नहीं बदल सकते । हमें अपने आप को बदलकर कथनी से करनी की ओर लौटना चाहिए, इसी में सम्पूर्ण समाज का कल्याण है ।।

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उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है ।।
जो सोवत है, सो खोवत है, जो जागत है, सो पावत है ।।

।। नारायण ही मालिक हैं, आप सभी का नित्य कल्याण हो ।।

।। नमों नारायण ।।

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