श्री वैष्णव दीक्षा विधान ! Shri Vaishnav Deeksha Vidhan.
जय श्रीमन्नारायण,
Swami Shri Dhananjay ji Maharaj.
विशिष्टाद्वैत मत, जिसके प्रतिपादक या संस्थापक श्री रामानुजाचार्य हैं, से श्री वैष्णवों के लिए निम्नांकित संस्कार शास्त्रानुमोदित है !!ताप: पुण्ड्रं तथा नाम मन्त्रो यागश्च पञ्चमः !!
अमी पञ्चैव संस्काराः परमैकान्तिनो मताः !!
पंचसंस्कर वो संस्कार है, जो भगवन की शरणागति ग्रहण करते हुए, आचार्य अपने शिष्यों को ताप ,उर्ध्वपुण्ड्र, नाम, अष्टाक्षरी मन्त्र तथा यज्ञ कार्य सम्पादन करके करवाते हैं !!
(१) ताप : आचार्य दीक्षा देते समय चाँदी के बने हुए शँख-चक्र की मुद्राओ को अग्नि में तपा कर, दोनों बहुमूल में क्रमशः अंकित करते हैं, इसे ताप संस्कार कहा जाता है !!
(२) उर्ध्वपुण्ड्र : शरणागति ग्रहण करने वाले को ललाट पर पाशा तथा श्री चूर्ण से उर्ध्वपुण्ड्र तिलक लगाया जाता है !!
(३) नामकरण : दीक्षा ग्रहण करने वाले व्यक्ति के नाम के प्रथम अक्षर का आधार लेकर, एक सांप्रदायिक नाम दिया जाता है, इसे ही नामकरण संस्कार कहा जाता है !!
(४) मन्त्र – इस मे आचार्य शिष्य के दायें कान मे “ॐ नमो नारायणाय “ यह अष्टाक्षरी मन्त्र प्रदान करते हैं, और यही गुरुमंत्र है ! इस के बाद द्वय मन्त्र दिया जाता है –
श्रीमन्नारायणस्य चरणौ शरणं प्रपद्ये !! श्रीमते नारायणाय नमः !!
अन्त मे चरम दिया जाता है -
सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं ब्रज !!
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः !!
(५) याग – इसके बाद पंच भू संस्कार से संस्कारित वेदी पर पुरुष सूक्त तथा श्री सूक्त से हवन कराया जाता है !!
यही पंच संस्कार कहे जाते है, जो वैष्णव दीक्षा ग्रहण करते समय योग्य आचार्य के द्वारा सम्पन्न किया जाता है !!
तदुपरान्त आचार्य अपने शिष्यों को उपदेश देते है, की मॉस मदिरा इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए, श्री रामानुजाचार्य स्वामीजी के उपदेशो का पूर्ण निष्ठां से पालन करते हुए जीवन बिताना चाहिए ! अपने सम्प्रदाय के मत का पूर्णतः पालन करना चाहिये, अपने आचार्य एवं पूर्वाचार्य के उपदेशो का पालन करना चाहिए ! भगवान एवं भागवतो का सदैव आदर करना चाहिए !!
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नोट : शास्त्रानुसार सबको इन पंचसंस्करों से संस्कृत कर, किसी को भी दीक्षा देकर शिष्य बनाने का अधिकार नही है ! त्रिदंड धारी कोई आचार्य, जिसको यह अधिकार दे, वही और किसी को इस प्रकार संस्कारित कर, वैष्णव दीक्षा दे संकता है !!!
!!! नमों नारायणाय !!!
Acharyaji Sri Vidya vihit ch antah Kim tat jnatumichchhamyaham
ReplyDeleteTatha kechan mahat pradhan Sri vidyayaha Granthsy vishaye ch kutrat prapti jayaman???
????
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DeleteUpari pratyuttaram dadatu