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Shreemad Bhagwat Katha - श्रीमद् भागवत कथा ।।।

जय श्रीमन्नारायण,
Swami Shri Dhananjay Ji Maharaj.
भगवान कि लीलामयी मूर्ति अत्यंत कीर्तनीय है और उसमें लगी हुई बुद्धि पाप व ताप को दूर करती है। जो उनकी मंगलमयी मंजुलकथा को भक्ति भाव से सुनता या सुनाता है और जो लोग अनन्य भाव से भजन-कीर्तन करते हैं, वो निश्चित ही परम भागवत हैं ।।।।


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श्रीमद भागवत जी कि कथा का श्रवण जो लोग करते हैं उन्हें तो वे अंर्तमयी परमात्मा अपना परम पद दे ही देते हैं । संसार में पशुओं को छोड़कर अपने पुरूषार्थ का सार जानने वाला ऐसा कौन सा पुरूष होगा, जो संसार के सम्पूर्ण सुखों को देने वाले भागवत जी के प्राचीन कथाओं में से किसी भी अमृतमयी कथा का अपने कर्णपुटों से एक बार रसपान करके फिर उनकी ओर से अपना मन हटा लेगा ।।।।

वे श्रेष्ठ भगवत भक्त हैं जो दूसरों का अभ्युदय देखकर प्रसन्न होते हैं और सदा हरिनाम परायण करते हैं। वे ही श्रेष्ठ अथवा आर्य कहे जाते हैं, जिन्होंने भगवान कि लीलाओं के गुणगान तथा श्रवण को ही, अपने कर्म का सार तथा जीवन का रस जाना है ।।।।
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पृथ्वी किनके भार से पीडि़त रहती है, पृथ्वी देवी ब्रम्हा जी से कहती है, जो कृष्ण भक्ति से विमुख है और जो श्री भगवान के भक्तों की निंदा करते हैं। उन महापातक मनुष्यों का भार वहन करने में पृथ्वी सदा सर्वदा असमर्थ बताती हैं । जो अपने धर्म व आचार से रहित है तथा नित्य कर्म से हीन है जिनकी बुद्धि में श्रद्धा के लिए कोई स्थान नहीं है। पृथ्वी कहती है, मैं उनके भार से सदा पीडि़त रहती हूं ।।।।

जो मातापिता गुरू, पत्नी, पुत्र व आश्रित वर्ग का पालन-पोषण नहीं करते हैं । उनका भी भार वहन करने में पृथ्वी असमर्थ है । जो दया व आचरण का भाव नहीं रखते। जो गुरूजनों और देवताओं की निंदा करते हैं, मित्रद्रोही हैं, विश्वासघाती हैं और धरोहर रखने वाले है। उनके भार से ही पृथ्वी सदा पीडि़त रहती है ।।।।

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जो जीवों की हिंसा करने वाले हैं, लोभी, गुरूद्रोही, मूढ मनुष्य देव पूजन तथा यज्ञ को भंग करने वाले हैं, ऐसे व्यक्तियों के भार से पृथ्वी सदा पीडि़त रहती है । संसार के जो पापी लोग सदैव गौ-ब्राम्हण, देवता, वैष्णव, श्री हरिकथा और श्रीहरि भक्ति से द्वेश करते हैं उनके भार से पृथ्वी सदा ही आक्रान्त रहती है । इसलिए मनुष्यों को चाहिए कि प्रभू चिंतन तथा शास्त्राज्ञानुसार सत्कर्म करते हुए, दुष्टों और परेशानियों से निपटने के लिए हर वक्त तैयार रहना चाहिए ।।।
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।।। नमों नारायण ।।।

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