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मनुष्य का मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है ।। sansthanam.

जय श्रीमन्नारायण,



SWAMI DHANANJAY MAHARAJ.
मित्रों, मनुष्य का मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है । मन यदि विषयों में आसक्त है, तो वह बन्धन का कारण होता है और यही मन यदि भगवान में आसक्त हो जाए तो मोक्ष का कारण भी बन जाता है ।।


भागवत में भगवान कपिल एवं माता देवहुति संवाद में कपिल ने कहा कि भगवान मनुष्य का शरीर या घर नहीं देखते बल्कि हृदय देखते हैं । हृदय विशाल हो तो भगवान को आना ही पड़ता है माता । मन ही मनुष्य की सारी क्रियाओं का कारण है । मन के सुधरने से सब कुछ सुधरता है, मन के बिगड़ने से सब कुछ बिगड़ जाता है । एक तरह से कहें तो हमारा मन बड़ा ही कपटी है । ये सारा मेरा और तेरा का खेल इस मन का ही रचाया हुआ है । सचमुच मन ही बन्धन और मोक्ष दोनों का कारण है ।।

मित्रों, मन का स्वभाव अधोगामी अर्थात् यों कहें कि पानी की तरह सदैव नीचे की ओर ही जाना पसन्द करता है । जैसे लाखों खर्च करके कितने भी अच्छे प्रकार के मोटर से आप पानी को हजारों मीटर की ऊँचाई पर चढ़ा दो, लेकिन मौका मिलते ही यह तत्काल नीचे की ओर प्रवाहित होना शुरू हो जाता है, ठीक उसी तरह हमारा मन है, यह हमेशा बुराई की तरफ ही जाना चाहता है ।।

सज्जनों, हमें पाप करने के लिए किसी से कोई प्रेरणा नहीं लेनी पड़ती है, बल्कि मनुष्य स्वतः ही पापकर्म करता है । परन्तु पुण्य करने के लिए न जाने कितने ही शास्त्र और सन्त लगे हैं प्रेरणा देने में फिर भी लोग सुनते ही नहीं । मनुष्य का मन पानी की तरह गड्ढे की ओर ही बहता है । जल की भांति मन का स्वभाव भी उपर नहीं, बल्कि नीचे की तरफ जाने का है । मनुष्य को हर समय यह समय प्रयत्न करना चाहिए कि अपना चरित्र अपना आचरण कैसे उपर चढ़े । हमें सदैव प्रयत्न करते रहना है, कि इस मन को पानी की तरह ही ऊपर कैसे चढ़ायें ? उसे परमात्मा के चरणों तक कैसे ले जायें ?

मित्रों, जैसा की हमने उपर चर्चा किया एक यंत्र अर्थात मोटर का । तो जैसे की उस मोटर के संग में आने से पानी हजारों फीट ऊपर चढ़ाया जा सकता है । उसी प्रकार सत्संग के माध्यम से हम अपने कुटिल मन को भी ऊपर चढ़ा सकते हैं । अपने मन को सत्पुरुषों का संग दो, फिर देखो क्या परिवर्तन होता है । महापुरुषों का संग जितना अधिक जीवन में बढ़ेगा तो स्वतः ही अधोगामी मन भी उर्ध्वगामी बन जायेगा ।।
कबीरदास जी कहते हैं, कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत । मन ही मिलावत राम से, मन ही करत फजित ।
यह तो गति है अटपटी, झटपट लखहिं न कोय । जब मन की खटपट मिटहिं, तो चटपट दर्शन होय ।।

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भगवान नारायण और माता महालक्ष्मी सभी को सद्बुद्धि दें ।।

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जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् ।।


।। नमों नारायण ।।

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