पुरुषोत्तम मास में भगवान श्री हरि नारायण की साधना का सहज मार्ग ।। the purushottam month search for the God. Sansthanam.com
जय श्रीमन्नारायण,
पुरुषोत्तम मास में भगवान श्री हरि नारायण की साधना का सहज मार्ग ।।
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शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं ।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।
मित्रों, भगवान श्री हरि के अवतार मानव कल्याण के लिए ही होता है । भगवान श्री कृष्ण के स्वरुप में हरि का पूर्ण योगेश्वर, भक्ति, शक्ति, पराक्रम तथा नीतियों का साक्षात संगम हैं । पुरुषोत्तम मास में भगवान् श्री हरि की उपासना या योगेश्वर कृष्ण की साधना का एक ही प्रतिफल मिलता है ।।
कृष्ण का स्वरुप आज से पाँच हज़ार वर्ष पूर्व जितना सार्थक था आज भी उतना ही है । कृष्ण का जीवनचरित्र बालपन से लेकर निर्वान तक हर कदम पर रस, योग, प्रेम, माया तथा नीति आदि से ओतप्रोत रहा है । उनके जीवन की हर घटना हम मानवों के लिए प्रेरणादायक है, वे साक्षात परब्रह्म हैं । उन्होंने अपने जीवन में कभी भी कर्म की राह नहीं छोड़ी व जीवन को पूर्ण आनंद और वैभव के साथ हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया ।।
इसलिए कहा जाता है, कि सबसे बड़ा योगी तो गृहस्थ ही होता है जो इतने बंधनों को सँभालते हुए भी जीवन की यात्रा सहजता से करता है । अपने गृहस्थ जीवन के सभी दायित्वों को निभाते हुए साधना भी करना तथा प्रभु तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करना ये बहुत बड़ा योग है ।।
मित्रों, वैसे तो श्री हरि साधना श्वास-श्वास करने को बताया गया है हमारे शास्त्रों में । परन्तु पुरुषोत्तम मास में धन, धर्म, युक्ति, भुक्ति, मुक्ति तथा जीवन का आनन्द भी चाहिए उसे श्री युक्त हरि यानी नारायण साधना करनी चाहिए । इस मास में विशेष रूप से इस विधि के अनुसार भगवान नारायण का पूजन करें तो हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है । चांदी के समतल पत्र पर श्री यंत्र बना हो उस पर भगवान विष्णु की खड़ी प्रतिमा उसी श्री यंत्र के ऊपर ही स्थापित करें । लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं और उस पर कुमकुम से स्वास्तिक बनायें । उस पर श्रीयन्त्र के उपर नारायण की प्रतिमा उपरोक्त विधि से स्थापित करें ।।
भगवान् नारायण की प्रशन्नता हेतु कुछ आवश्यक निर्देशों का पालन आवश्यक होता है । जैसे पुरे माह १ समय वो भी सात्विक भोजन ग्रहण करें, पीले वस्त्र, पीला आसन, उत्तर दिशा, ब्रहमचर्य, भूमिशयन इत्यादि नियमों के पालन के साथ इस साधन को करना चाहिए । पूजा के लिए केसर, गंगाजल, अष्टगंध, घी का दीपक, कमल के फूल यदि मिल जाएँ तो, वर्ना पीले पुष्प की पंखुडियां और भोग हेतु खीर का प्रयोग करें । प्रातः ५ से ६ के बीच और और संध्या काल में १० बजे के पहले इस साधना को करना चाहिए ।।
अथ ध्यानम् :-
मंगलम भगवान् विष्णु, मगलम गरुडध्वज: ।
मंगलं पुण्डरीकाक्षो मंगलाय तनो हरि: ।।
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस मन्त्र की ११ माला जप करें । फिर विष्णुसहस्त्रनाम के १, ५, ७, या ११ पाठ करें । इस साधना में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अति आवश्यक अंग है, जो कि किसी भी पूजा शॉप पर सरलता से मिल जाता है या नेट पर भी उपलब्ध है । यह साधना अति ही सरल तथा शीघ्र फलदायी भी है । जो जिस भाव से इस साधना को संपन्न करता है, उसे उसी भाव के अनुसार फल भी मिलता ही है । अतः साधना करें और अनुभव करें बाकी नारायण की कृपा ।।
।। नमों नारायण ।।
पुरुषोत्तम मास में भगवान श्री हरि नारायण की साधना का सहज मार्ग ।।
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शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं ।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् ।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।
मित्रों, भगवान श्री हरि के अवतार मानव कल्याण के लिए ही होता है । भगवान श्री कृष्ण के स्वरुप में हरि का पूर्ण योगेश्वर, भक्ति, शक्ति, पराक्रम तथा नीतियों का साक्षात संगम हैं । पुरुषोत्तम मास में भगवान् श्री हरि की उपासना या योगेश्वर कृष्ण की साधना का एक ही प्रतिफल मिलता है ।।
कृष्ण का स्वरुप आज से पाँच हज़ार वर्ष पूर्व जितना सार्थक था आज भी उतना ही है । कृष्ण का जीवनचरित्र बालपन से लेकर निर्वान तक हर कदम पर रस, योग, प्रेम, माया तथा नीति आदि से ओतप्रोत रहा है । उनके जीवन की हर घटना हम मानवों के लिए प्रेरणादायक है, वे साक्षात परब्रह्म हैं । उन्होंने अपने जीवन में कभी भी कर्म की राह नहीं छोड़ी व जीवन को पूर्ण आनंद और वैभव के साथ हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया ।।
इसलिए कहा जाता है, कि सबसे बड़ा योगी तो गृहस्थ ही होता है जो इतने बंधनों को सँभालते हुए भी जीवन की यात्रा सहजता से करता है । अपने गृहस्थ जीवन के सभी दायित्वों को निभाते हुए साधना भी करना तथा प्रभु तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करना ये बहुत बड़ा योग है ।।
मित्रों, वैसे तो श्री हरि साधना श्वास-श्वास करने को बताया गया है हमारे शास्त्रों में । परन्तु पुरुषोत्तम मास में धन, धर्म, युक्ति, भुक्ति, मुक्ति तथा जीवन का आनन्द भी चाहिए उसे श्री युक्त हरि यानी नारायण साधना करनी चाहिए । इस मास में विशेष रूप से इस विधि के अनुसार भगवान नारायण का पूजन करें तो हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है । चांदी के समतल पत्र पर श्री यंत्र बना हो उस पर भगवान विष्णु की खड़ी प्रतिमा उसी श्री यंत्र के ऊपर ही स्थापित करें । लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं और उस पर कुमकुम से स्वास्तिक बनायें । उस पर श्रीयन्त्र के उपर नारायण की प्रतिमा उपरोक्त विधि से स्थापित करें ।।
भगवान् नारायण की प्रशन्नता हेतु कुछ आवश्यक निर्देशों का पालन आवश्यक होता है । जैसे पुरे माह १ समय वो भी सात्विक भोजन ग्रहण करें, पीले वस्त्र, पीला आसन, उत्तर दिशा, ब्रहमचर्य, भूमिशयन इत्यादि नियमों के पालन के साथ इस साधन को करना चाहिए । पूजा के लिए केसर, गंगाजल, अष्टगंध, घी का दीपक, कमल के फूल यदि मिल जाएँ तो, वर्ना पीले पुष्प की पंखुडियां और भोग हेतु खीर का प्रयोग करें । प्रातः ५ से ६ के बीच और और संध्या काल में १० बजे के पहले इस साधना को करना चाहिए ।।
अथ ध्यानम् :-
मंगलम भगवान् विष्णु, मगलम गरुडध्वज: ।
मंगलं पुण्डरीकाक्षो मंगलाय तनो हरि: ।।
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस मन्त्र की ११ माला जप करें । फिर विष्णुसहस्त्रनाम के १, ५, ७, या ११ पाठ करें । इस साधना में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अति आवश्यक अंग है, जो कि किसी भी पूजा शॉप पर सरलता से मिल जाता है या नेट पर भी उपलब्ध है । यह साधना अति ही सरल तथा शीघ्र फलदायी भी है । जो जिस भाव से इस साधना को संपन्न करता है, उसे उसी भाव के अनुसार फल भी मिलता ही है । अतः साधना करें और अनुभव करें बाकी नारायण की कृपा ।।
।। नमों नारायण ।।
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