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ब्रह्मतत्त्व को जानने अथवा ब्रह्मसत्ता को पाने का सहज मार्ग ।। Sansthanam.

जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, हम धनवान होंगे या नहीं, यशस्वी होंगे या नहीं, चुनाव जीतेंगे या नहीं इसमें शंका हो सकती है । लेकिन हम मरेंगे या नहीं इसमें कोई शंका है ? विमान उड़ने का समय निश्चित होता है, बस चलने का समय निश्चित होता है, गाड़ी छूटने का समय निश्चित होता है परन्तु इस जीवन की गाड़ी के छूटने का कोई निश्चित समय है ?

आज तक आपने या हमने इस जगत में जो कुछ भी जाना है, जो कुछ भी प्राप्त किया है अथवा आज के बाद हम जो भी जानंगे और प्राप्त करेंगे, वह सब मृत्यु के एक ही झटके  में छूट जाएगा, जाना अनजाना हो जायेगा, प्राप्ति अप्राप्ति में बदल जायेगी । अतः अन्तर्मुख होकर अपने अविचल आत्मा को, निजस्वरूप के अगाध आनन्द को, शाश्वत शान्ति को प्राप्त कर लें तो फिर तो जीव ही अविनाशी हो जाता है ।।

हमें अपने भीतर सोये हुए निश्चय बल को जगाना होगा, किसी भी देश, किसी भी काल में सर्वोत्तम आत्मबल को अर्जित करना होगा । हमारी आत्मा में अथाह सामर्थ्य है । परन्तु अपने को हम अगर दीन-हीन मान बैठे तो विश्व में ऐसी कोई सत्ता नहीं जो जीव को ऊपर उठा सके । हाँ अपने आत्मस्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाने पर तो त्रिलोकी में ऐसी कोई सत्ता नहीं जो हमें दबाये रख सके ।।

हमें सदा स्मरण रखना है, कि इधर-उधर भटकती हुई हमारी वृत्तियाँ जो हमें केवल भटका रही हैं । उनके चक्कर में पड़कर बहकना नहीं, अपितु अपनी तमाम वृत्तियों को एकत्रित करके साधना-काल में आत्मचिन्तन में लगाना होगा और केवल साधन काल में ही नहीं अपितु संसार के व्यवहार-काल में भी जो कार्य करते हैं उसमें भी अपनी वृत्तियों को एकाग्र रखना होगा ।।

एकाग्रचित्त होकर कोई भी कार्य जब हम करते हैं, तो उसका परिणाम सफलता ही होता है, फिर चाहे वो कोई भी कार्य क्यों न हो । सदा शान्त वृत्ति धारण करने का अभ्यास करना, विचारशील एवं प्रसन्नचित्त रहने का प्रयास करना । जीवमात्र को अपना ही स्वरूप समझना, सबसे स्नेह रखना, दिल में सभी के लिए प्रेम रखना, यही सर्वोत्कृष्ट साधना है । इसके अलावा आत्मनिष्ठा में जगे हुए महापुरूषों का सत्संग श्रवण करना एवं सत्साहित्यों के पठन-पाठन से जीवन को आनन्दित रखने का सतत् प्रयास करना, यही ब्रह्मतत्त्व को जानने अथवा ब्रह्मसत्ता को पाने का सहज मार्ग है ।।

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नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।। नारायण नारायण ।।

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