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सिद्धान्तवादी व्यक्तित्व से ही जीवन के हर तरह की पूजा-अर्चना-बन्दना-भुक्ति और मुक्ति सब सिद्ध हो जाती है ।।

सिद्धान्तवादी व्यक्तित्व से ही जीवन के हर तरह की पूजा-अर्चना-बन्दना-भुक्ति और मुक्ति सब सिद्ध हो जाती है ।। Theorists Personality are all proven. जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, आज बहुत दिनों के बाद बठे हुए एक कहानी याद आ गयी तो सोंचा आपलोगों के साथ उसी के माध्यम से अपनी पुरानी यादें भी ताजा कर लूँ । बंधुओं, हम मनुष्यों की गति भी बड़ी न्यारी है । थोड़ी सी कुछ मिल जाय तो जैसे लगता है, अब हमसे बड़ा कोई है ही नहीं । लेकिन हम अपने ही बनाये इस सांसारिकता के भँवर में ऐसे उलझते चले जाते हैं, कि अन्तिम में हाथ तो कुछ लगता नहीं अपितु पछता-पछताकर प्राण जाता है ।।
ठीक ऐसी ही एक कहानी मैंने अपने बचपन में कहीं सुना था, आज याद आ गया तो सोंचा आपलोगों से भी शेयर करूँ । एक कौआ था, एक दिन भोजन की तलाश में भटकते हुए देखा कि नदी में एक हाथी की लाश बही जा रही थी । कौआ तो अत्यन्त प्रसन्न हो उठा, तत्क्षण उस पर आकर बैठ गया । अपनी इच्छानुसार मृत हाथी का मांस खाया, नदी का जल पिया, और उस लाश पर इधर-उधर फुदकते हुए कौए को परम तृप्ति का आभास हुआ ।।
आनन्द मग्न कौआ सोचने लगा, अहा ! यह तो अत्यंत ही सुंदर यान है, यहां भोजन और जल की भी कोई कमी नहीं है । फिर इसे छोड़कर अन्यत्र क्यों भटकता फिरूं ? अपने लिये तो यही व्यवस्था अनुकूल है । कौआ नदी के साथ बहने वाली उस लाश के ऊपर कई दिनों तक आनन्द मनाता रहा । भूख लगने पर वह उस लाश को नोचकर खा लेता, प्यास लगने पर नदी का पानी पी लेता । अगाध जलराशि, उसका तेज प्रवाह, किनारे पर दूर-दूर तक फैले प्रकृति के मनोहारी दृश्य-इन्हें देख-देखकर वह कौआ आनन्द विभोर होता रहा ।।
आखिर में एक दिन वह बहती हुई नदी अपने अन्तिम गन्तब्य महासागर में जा मिली । वह मुदित थी कि उसे अपना गंतव्य प्राप्त हो गया था । सागर से मिलना ही किसी भी नदी का चरम लक्ष्य होता है, किंतु उस दिन उस लक्ष्यहीन कौए की तो बड़ी दुर्गति हो गई । चार दिन की मौज-मस्ती ने उसे ऐसी जगह ला पटका था, जहां उसके लिए न भोजन था, न पेयजल और न ही कोई आश्रय । सब ओर सीमाहीन अनन्तानन्त खारी जल-राशि हिलोरें ले रही थी ।।
बेचारा कौआ थका-हारा और भूखा-प्यासा कुछ दिन तक तो चारों दिशाओं में पंख फटकारता रहा, अपनी छिछली और टेढ़ी-मेढ़ी उड़ानों से झूठा रौब दिखाता रहा । परन्तु उस अनन्त महासागर का कोई ओर-छोर उसे कहीं नजर आ नहीं रहा था । आखिरकार थककर, दुख से कातर होकर एक दिन वह सागर की उन्हीं गगनचुंबी लहरों में गिर ही गया । आख़िरकार एक विशाल मगरमच्छ ने उसे निगल लिया इस प्रकार शारीरिक सुख में लिप्त एक दिशाहीन जीव का भयंकर अन्त हो गया ।।
Swami Dhananjay Maharaj.
मित्रों, हमारी आपकी भी गति कुछ अलग नहीं है । इस दिशाहीन कौए की भाँती कहीं हम भी भटक तो नहीं गए हैं विषय सुख में ? ये हमें स्वयं को विचार करना है-सोंचना है । अक्सर हम मनुष्यों की भी गति उसी कौए की तरह ही होती है, जो आहार और आश्रय को ही परम गति समझ बैठता है । हमें अपने लक्ष्य को बड़ा बनाना होगा, जिसमें आपसी भाईचारा, आपसी प्रेम-सौहार्द्र, सामाजिक शांति के साथ ही अपने जीवन को सिद्धान्तवादी बनाना होगा । इतने से ही हर तरह की पूजा-अर्चना-बन्दना-भुक्ति और मुक्ति सब सिद्ध हो जाएगी ।।

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