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जय श्रीमन्नारायण,

कर्पूर गौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्र हारं |
सदा बसन्तम् हृदयारविन्दे भवं भवामि सहितं नमामि ||

तारक नाम का एक असुर हो गया एक समय और देवताओं को बहुत परेशान किया | उनका घर-द्वार, स्वर्गादि सब कुछ अपने कब्जे में कर लिया | सभी देवता भगवान नारायण कि सलाह से, भगवान शिव के पास पहुंचे | परन्तु शिव जी तो समाधि में थे | पुनः भगवान के कहने पर कामदेव को लेकर उनको (शिव) जी को जगाने पहुंचे | कामदेव ने बहुत परिश्रम किया, भगवान जगे, और देखा काम का तांडव | और इतने में ही गुस्से से तीसरा नेत्र बाबा का खुल गया, और काम जलकर भस्म हो गया ||

रती के रोने-विलाप करने पर बाबा ने कहा -- जब जदुबंस कृष्न अवतारा | होइहि हरन महा महिभारा || कृष्न तनय होइहि पति तोरा | बचनु अन्यथा होइ न मोरा ||   अर्थात :-- जब पृथ्वी के बड़े भारी भार को उतारने के लिए यदुवंश में श्री कृष्ण का अवतार होगा, तब तेरा पति उनके पुत्र (प्रद्युम्न) के रूप में उत्पन्न होगा | मेरा यह वचन अन्यथा नहीं होगा ||

देवताओं ने कहा - लेकिन अभी क्या करें, अभी काम नहीं तो सृष्टि का ये अंतिम पीढ़ी होगा | बाबा ने कहा -- हे रति ! अब से तेरे स्वामी का नाम अनंग होगा | वह बिना ही शरीर के सबको व्यापेगा ||

कहने का तात्पर्य यह है, कि भगवान शिव के विषय में ये उपर का जो श्लोक है, कहता है, कि -- जिनका रंग कर्पूर के समान गौर है, जो इस संसार के सार तत्व हैं, भुजंग अर्थात सर्प अर्थात कष्टों और परेशानियों को ही गले लगाये रहते हैं, और हमें ये बताते हैं, कि तुम भी कष्टों को सहन करने कि शक्ति को जगाओं ||

जो सादा वेष को ही पसंद करते हैं, अर्थात दुःख में तड़पो नहीं, सुख में फूलो नहीं, हृदय में सदा अरविन्द अर्थात नारायण का स्मरण करते हुए ये संदेश देते हैं, कि अपने मालिक को सदा याद रखो | ऐसे संसार के मालिक और सृष्टि स्वरूपा माता पार्वती दोनों को हम एक साथ नमन करते हैं ||

बात भी सत्य है, शिव जी ने कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया, लेकिन कही भी उनको क्रोधावतार नहीं कहा गया बल्कि करुणावतार ही कहा गया है || ऐसे करुणावान भोले बाबा को मैं ह्रदय से नमन करता हूँ, और अपने सभी मित्रों के उपर भी करुण दृष्टि बनाये रखने कि प्रार्थना करता हूँ ||

!! नमों नारायणाय !!

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