जय श्रीमन्नारायण,
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान् || अ.९.श्लोक.२०.
अर्थ : तीनों वेदों में विधान किए हुए सकाम कर्मों को करने वाले, सोम रस को पीने वाले, पापरहित पुरुष (यहाँ स्वर्ग प्राप्ति के प्रतिबंधक देव ऋणरूप पाप से पवित्र होना समझना चाहिए) मुझको यज्ञों के द्वारा पूजकर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते हैं, वे पुरुष अपने पुण्यों के फलरूप स्वर्गलोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में दिव्य देवताओं के भोगों को भोगते हैं || २० ||
भावार्थ:- मैं, मेरी बात कर रहा हूँ, मान लो मैं, नहीं जानता कि पत्थर कि मूर्ति में भगवान है, या नहीं | अथवा जो कहते हैं, कि पत्थर में भगवान कि पूजा आडम्बर है, मैं उनकी बात मान लेता हूँ | फिर भी मेरी मान्यता है, कि मंदिर के अन्दर जो मूर्ति है, उसमें मेरा गोपाल, बैठा है, वो मुझसे बातें कर रहा है, आदि-आदि ||
दूसरी बात मैं, वहां मान लेता हूँ, कि भक्ति करने भी नहीं जाता, बल्कि धन कमाने के लिए, ढोंग रचाने जाता हूँ, और वहां बैठकर लोगों को मीठी-मीठी बातों में उलझाकर रखता हूँ, ताकि वो लोग खुश होकर मुझे धन देंगें | इसके बाद भी करता तो हूँ, समाज के भले कि ही बात न | और अगर मेरे स्वार्थ के वजह से भी, कोई किसी को, किसी प्रकार कि हानी, न पहुंचाए, और किसी कि दुश्मनी अगर दोस्ती में तब्दील हो जाये, तो मैं समझता हूँ, कि मुझसे बड़ा धार्मिक कोई दूसरा कदाचित ही मिलेगा ||
और अगर कोई सच्चे धर्म कि चर्चा करके भी किसी को किसी प्रकार कि बुराई से बचने में असमर्थ रहा, तो उसकी कोई महत्ता नहीं, कोई उपयोगिता नहीं ||
कुछ लोग आजकल फेसबुक पर प्रचार कर रहे हैं, कि गीता, भागवत तथा समस्त पुराण पंडितों का बनाया पाखंड है | और ये सारी बातें, पंडितों के कमाई का जरिया है, तो मैं समझता हूँ, कि अगर गीता में इस श्लोक जैसे श्लोकों को पढकर, कोई व्यक्ति स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुण्य कार्य में लग जाये ||
किसी को मारने, कहीं लड़की छेड़ने, अथवा किसी को लूटने का काम छोड़कर, किसी मंदिर में बैठकर भगवान समझकर किसी पत्थर कि मूर्ति को ही अगर पूजता है, तो मैं समझता हूँ, कि पंडितों का कमाना भी व्यर्थ नहीं है | और ऐसे लोगों का इस तरह कि बातों का प्रचार सर्वथा समाज को बहकाने और क्राइम को बढ़ावा देने का एक लक्ष्य नजर आता है, और कुछ नहीं |||
!! नमों नारायणाय !!
!! नमों नारायणाय !!
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