Breaking News

जय श्रीमन्नारायण,

सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि |
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्‌ ||

अर्थ:- अर्जुन बोले- हे कृष्ण ! पहले तो आप कर्मों के संन्यास की, और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं | इसलिए इन दोनों में से जो एक मेरे लिए भलीभाँति निश्चित कल्याणकारक साधन हो, उसको कहिए ||


अर्जुन कि तरह हम सबकी भी दुविधा यही सदा से ही रही है, आज भी है, और हमें लगता है, कि आगे भी रहेगी क्या ? लेकिन भगवान का निर्णय क्या है, आइये हम ये सुनते हैं ||

श्रीभगवानुवाच:-
सन्न्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ |
तयोस्तु कर्मसन्न्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ||

अर्थ:- श्री भगवान बोले- कर्म संन्यास और कर्मयोग- ये दोनों ही परम कल्याण के करने वाले हैं, परन्तु उन दोनों में भी कर्म संन्यास से कर्मयोग साधन में सुगम होने से श्रेष्ठ है ||

ये भगवान का निर्णय है, सन्यास, योग, साधना, उपासना सब अपने जगह पर हैं, लेकिन कर्म से हर तरह कि सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती है, तो कर्म ही सर्वश्रेष्ठ है | और कर्म तो बंधुओं, ऐसी कुंजी है, कि मोक्ष का भी ताला खोल देती है, अगर आसक्ति रहित होकर किया जाय तो | यथा:- 

ज्ञेयः स नित्यसन्न्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्‍क्षति |
निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते ||

अर्थ:- हे अर्जुन ! जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है, और न किसी की आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी सदा संन्यासी ही समझने योग्य है | क्योंकि राग-द्वेषादि द्वंद्वों से रहित पुरुष सुखपूर्वक संसार बंधन से मुक्त हो जाता है ||

अत: इस संसार में वेद विहित कर्तब्य कर्मों को करने से ज्यादा लाभ मिलता है, न कि किसी का कुछ सुन के उसके पीछे भागने से || 

वेद विहित कर्म अर्थात – सत्यं वद – सत्य बोलो ! प्रियं वद – प्रिय बोलो ! मा गृधः कस्य स्विद्धनं – गलत तरीके से किसी का धन मत छीनो अथवा ग्रहण करो आदि-आदि ||

आप सभी का नित्य कल्याण हो, नारायण आप सभी कि रक्षा करें ||

!! नमों नारायणाय !!

1 comment:

  1. मातृ देवो भव, पितृ देवो भव आचार्य देवो भव !!

    ReplyDelete

Note: Only a member of this blog may post a comment.