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जय श्रीमन्नारायण,

रोमन ग्रन्थ में एक कहानी मिलती है, क्योंकि रोमन सभ्यता हमारी वादिक सभ्यता से लगभग मिलती-जुलती सी है !  तो कहानी इस प्रकार है, की एक राजा था, जो बड़ा ही प्रतापी था, उसे ब्रह्मज्ञान चाहिए था !!

किसी ने कहा - कि काली माता की उपासना करो, वही ब्रह्मज्ञान, आत्मा, परमात्मा, ज्ञान एवं मुक्ति जैसे शब्दों के विषय में बताएगी !!

राजा ने बहुत लगन से माँ काली की उपासना की, माता प्रशन्न होकर आयीं और कहा - बेटा वरदान मांग ! राजा ने कहा मुझे ब्रह्मज्ञान चाहिए, मुक्ति क्या होता है, ये जानना है, मुझे !!

माता ने कहा - बेटा भूल जा इन बातों को, तथा और जो चाहिए मांग ले ! लेकिन राजा ने कहा - की मुझे तो यही चाहिए, इसके अलावा अन्य कोई कामना नहीं है !!

काली माँ ने कहा - बेटा मैं आजतक खुद नहीं जानती की ब्रह्म क्या है, तथा लोगों की मुक्ति कैसे होती है ? हां कुछ सुना जरुर है, कि एक जगह है, जहाँ ब्रह्म का निवास है, जो पर्याप्त नहीं लगता ! अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हें वहाँ ले जा सकती हूँ, लेकिन मेरी कोई जबाबदारी नहीं होगी !!

फिर भी राजा ने बहुत जिद्द किया, कि मुझे तो ब्रह्मज्ञान ही चाहिए ! तथा मुझे मुक्ति के बारे में जानना है ! माता ने स्वर्ग-नरक, शीत-ताप का भय भी बहुत दिखाया, पर राजा नहीं माना | मैया ने कहा चलो फिर - और लेकर चली | कहानी के अनुसार रास्ते में बहुत कष्ट होने लगा, तो माता ने फिर कहा - चलो लौट चलते हैं ! लेकिन राजा सभी प्रकार के कष्टों को सहन करता गया | बहुत कठिनाई के उपरांत एक बड़ा बीहड़ स्थान आया ! उस बीहड़ को देखकर राजा डरने लगा ! और डरते-डरते पूछा - कहाँ है, ब्रह्म ?

माता ने कहा -- हमने सुना है, कि यहीं, एक गुफा है, जो परदे से ढकी रहती है ! और वर्ष में दो सेकेण्ड के लिए इस गुफे का द्वार खुलता है ! अगर तुम्हें ब्रह्म का दर्शन करना हो तो इसी में जाना पड़ेगा !!

राजा ने पूछा - कि क्या आप कभी गयीं हैं, अंदर तथा अपनी आखों से देखा है, उस ब्रह्म को ? माता ने सीधे शब्दों में कहा -- नहीं !!

राजा ने कहा - तो फिर आप मुझे कैसे कह रहीं हैं, कि ब्रह्म यहीं मिलेगा ? माता ने कहा - कि मैं, इसलिए कह रही हूँ, क्योंकि तुझे ब्रह्म चाहिए ! और ऐसे जगहों पर किसी का कथन ही प्रमाण होता है, इसीलिए मैं ऐसा कह रही हूँ ! तथा मुझे ब्रह्म नहीं चाहिए, इसलिए मैंने नहीं देखा !!

फिर राजा ने कहा - तो क्या और किसी ने देखा है ? माता ने कहा - कि सुना है, इसके अंदर जाने कि जिज्ञासा तो बहुतों को होती है, और पहले भी हुई थी ! लेकिन जो अंदर गया उसकी केवल चीखें बाहर आयीं, जो गया वो तो नहीं आया ! माता कि बात सुनकर राजा घबराया एवं डरा भी ! लेकिन माता कि बात पर भी उसे विश्वास नहीं हुआ और कहा मैं भी अंदर जाना चाहता हूँ !!

माता ने कहा - कि अंदर अगर जाना चाहो तो जा सकते हो, लेकिन फिर मैं कुछ नहीं कर सकती ! मैं चली जाउंगी, फिर तुम्हारा जो चाहे हो तुम समझना !!

कहानी कहती है, कि राजा अंदर गया और जोर से चिल्लाया - माता मुझे बचाओ और माता वहाँ से लौट आयीं, तथा राजा आज भी वहीँ चिल्ला रहा है !!

अभिप्राय यह है, कि हम कहीं पढ़ अथवा सुन लेते हैं, कि ब्रह्मज्ञान हो तो मुक्ति हो जायेगी ! आत्म ज्ञान हो जाये तो कल्याण हो जायेगा तथा हम जीतेजी मुक्त हो जायेंगें ! लेकिन वास्तव में हम इन शब्दों को वास्तव में समझ ही नहीं पाते हैं !!

किसी भी तरह कि जानकारी ही ज्ञान है, चाहे वो सामाजिक ज्ञान हो अथवा आध्यात्मिक ! दूसरी बात जब किसी भी तरह कि जानकारी को हम व्यवहार में उतार लेते हैं, तो हमारी मुक्ति होजाती है ! मुक्ति कभी भी किसी भी अवस्था में हमसे अलग नहीं है ! हम मुक्ति ही हैं, मुक्ति का सच्चा स्वरूप ही हमारा स्वरूप है ! हम नित्य मुक्त हैं, हम जो अपने को भारी-भारी सा महशुस करते हैं, वो हमारे बुरे कर्मों पर पर्दा डालने के चक्कर में होता है !!

अगर हम सीधे-सीधे हमारे लिए निर्धारित कर्मों को करें, और अपने से बुराई खुद न करें, तो समाज स्वच्छ रहेगा, हम मुक्त होंगे, और हमारे सामान कोई दूसरा ज्ञानी नहीं होगा !! 

!! नमों नारायणाय !!

1 comment:

  1. आपकी शरण मे आकर मै धन्य हुआ
    मेरे जैसा तुच्छ आदमी भी थोडा स ग्यानी बन गया आपको मेरा कोटि कोटि प्रणाम

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