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पुराणों कि महिमा - Puranon Ki Mahima !!

जय श्रीमन्नारायण,

यज्ञकर्म क्रियावेदः स्मृतिर्वेदो गृहाश्रमे ! स्मृतिर्वेदः क्रियावेदः पुराणेषु प्रतिष्ठितः !!
पुराणपुरुषाजातं यथेदं जगद्द्भुतम् ! तथेदं वाङ्मयं जातं पुराणेभ्यो न संशयः !!

न वेदे ग्रहसंचारो न शुद्धिः कालबोधिनी ! तिथिवृद्धिक्षयो वापि पर्वग्रहविनिर्णयः !!
इतिहासपुराणैस्तु निश्चयो$म् कृतः पुरा ! यत्र दृष्टं हि वेदेषु तत्सर्वं लक्ष्यते स्मृतौ !!

उभयोर्यन्न दृष्टं हि तत्पुराणैः प्रगीयते !!!
( नारद पुराण उ. अ. २४.)


अर्थ:- यज्ञ एवं कर्मकाण्ड के लिए वेद प्रमाण हैं ! गृहस्थों के लिए स्मृतियाँ ही प्रमाण हैं ! किन्तु वेद और स्मृतिशास्त्र (धर्मशास्त्र) दोंनों ही सम्यक रूप से पुराणों में प्रतिष्ठित है ! जैसे परमपुरुष परमात्मा से ही यह अद्भुत जगत उत्पन्न हुआ है, वैसे ही सम्पूर्ण संसार का वाङ्मय - साहित्य पुराणों से ही उत्पन्न है, इसमें लेशमात्र भी कोई संसय नहीं है !!

वेदों में तिथि, नक्षत्र आदि काल निर्णायक और ग्रह संचार की कोई युक्ति नहीं बताई गयी है ! तिथियों की वृद्धि, क्षय, पर्व, ग्रहण आदि का निर्णय भी उनमे कहीं नहीं है ! यह निर्णय सर्वप्रथम इतिहास पुराणों के द्वारा ही निश्चित किया गया है ! जो बातें वेदों में नहीं है, वे सब स्मृतियों में है, और जो बात इन दोंनों में नहीं मिलती, वो पुराणों के द्वारा ज्ञात होती है !!

भारतीय वाङ्मय में पुराणों का एक विशिष्ट स्थान है ! इनमे वेदों के निगूढ़ अर्थों का स्पष्टीकरण तो है ही, साथ ही कर्मकाण्ड, उपासना कांड, और ज्ञानकाण्ड के सरलतम विस्तार के साथ-साथ कथावैचित्र के द्वारा साधारण जनता को भी गूढ़ से गूढ़तम तत्व (ज्ञान) को भी सहजता से हृदयंगम करा देने की अपूर्व विशेषता है !!

इस युग में, धर्म की रक्षा और भक्ति के मनोरम विकास का जो यत्किंचित दर्शन हो रहा है, उसका समस्त श्रेय पुराण-साहित्य को ही है ! वस्तुतः भारतीय संस्कृति और साधना के क्षेत्र में कर्म, ज्ञान और भक्ति का मूल श्रोत वेद या श्रुतियों को ही माना गया है ! वेद अपौरुषेय, नित्य और स्वयं भगवान् की वाङ्मयी मूर्ति ही है ! स्वरूपतः वे भगवान के साथ अभिन्न हैं, परन्तु अर्थ की दृष्टि से वेद अत्यंत दुरूह भी है !!

वैसे तो वेदों का अर्थ आज कोई भी अपने मनमाने ढंग से कर लेता है, लेकिन मूल रूप में वेदों का अर्थ, बिना तपस्या के कोई नहीं जान सकता ! व्यास, बाल्मीकि आदि महर्षियों ने कठिन तपस्या और इश्वर कि असीम अनुकम्पा से हि इन दुरूह वेदों के प्राकृत अर्थ को कुछ-कुछ जाना ! और इन वेदों को प्रचारित करने कि आवश्यकता समझी, और इसीलिए उन्होंने वेदों के गुढ़ अर्थ को रामायण, महाभारत और पुराणों के रूप में सरलीकरण करके हमारे लिए प्रस्तुत किया !!

शास्त्रों में कहा गया है, कि वेदों के अर्थ को समझना है, तो रामायण, महाभारत और पुराणों के माध्यम से, इन्हीं के सहारे समझना चाहिए ! यथा - इतिहास-पुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत् !!!!

पुराणों की बहुत ही महिमा है, जीतनी गाई जाय, उतनी ही कम लगती है ! इन पुराणों में हमारे पूर्वज आदर्श ऋषियों की समूची परिकल्पनाएं समायी हुई हैं ! सम्पूर्ण विश्व को संरक्षण देने वाला विज्ञान समाहित है ! और यहाँ तक की, सम्पूर्ण सृष्टि को स्थिर रखने का गूढ़ ज्ञान भी इन पुराणों में है, जरुरत है, शास्त्र पुराणों को समझने की, सुनने की, और इनके बताये मार्ग का अनुशरण करने की !!

हम आलोचनात्मक जिंदगी जीने में ही अपना समय ब्यर्थ में गंवाने में लगे रहते हैं ! हमें अपने जीवन में कुछ नया खोजने (रिसर्च) में विश्वास करना चाहिए ! और समाज में शांति कैसे बनी रहे, इसपर विचार करते रहना चाहिए ! हमारे गलत नजरिये, का ही परिणाम है, की वर्ष भर में कोई एक दिन ऐसा नहीं जाता, जिस दिन इस धरा पर अग्नि का प्रकोप न हो !!

कही आग लगी है, तो कहीं जल से तबाही का मंजर दिख रहा है ! सम्पूर्ण विश्व में, कोई ऐसा विज्ञान नहीं है, जो प्रकृति पर नियंत्रण कर सके, और प्रकृति पर नियंत्रण तभी संभव है, जब हम प्रकृति की उपासना करेंगें, वेदानुसार ! अग्नि की उपासना बंद हो गयी, तो अग्नि अपना भोजन ले लेता है, वैसे ही जल की उपासना बंद हो गयी, तो वरुणदेव भी अपना हिस्सा मार लेते हैं !!

कभी भी ध्यान रखना प्रकृति किसी भी दृष्टिकोण से कमजोर नहीं है ! और अगर इस प्रकृति के द्वारा प्रदत्त अग्नि, जल, वायु आदि को फ्री में उपयोग करोगे, तो ये अपना बिल स्वयं वसूल करने की क्षमता रखते हैं ! जैसे बिजली का बिल न देने पर, बिजली का कनेक्सन काट दिया जाता है, वैसे ही प्रकृति का अंश न देने पर, प्रकृति तबाही के रूप में, तुम्हें बर्बाद करके अपना अंश वसूल कर लेगी !!

http://www.balajivedvidyalaya.org/index2.php
http://swamishridhananjayjimaharaj.blogspot.in/2012/10/puranon-ki-mahima.html

पुराण यही बताता है, उसके बताने का तरीका ऋषियों ने अपने तरीके से प्रस्तुत किया है ! कही लालच दिखाकर, कहीं डराकर, क्योंकि मनुष्य का मन निरंकुश हथिनी की तरह है ! और इसे वश में रखने के लिए, अंकुश (पुराणों) का प्रयोग आवश्यक है !!!!!

नारायण आप सभी का नित्य कल्याण करें !!!

!!!! नमों नारायण !!!!

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