Shubh Deepavali - शुभ दीपावली !!!
जय श्रीमन्नारायण,
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मित्रों दीपावली एक ऐसा पर्व है, जो की विज्ञान से भरा हुआ है ! जैसे ही वर्षा ऋतू समाप्त होती है, तो इस ऋतू में बहुत से रोगों को उत्पन्न करने वाले कीड़े हो जाते हैं ! और इनकी हत्या हम इंसानों को करने का कोई अधिकार है नहीं ! तो इस सुहाने मौसम में रंग भरने हेतु, उत्सव के रूप में, और लक्ष्मी का भी भरपूर आगमन हो हमारे जीवन में इसलिए दीप जलाकर हम इस उत्सव को मनाते हैं !!
घी का दीप जलाने से, जितने भी हानिकारक जीवाणु-कीटाणु हैं, उनका उनके स्वभावानुसार नाश हो जाता है ! और इस समय जो उर्जा घी के दीप जलने से निर्मित होती है, वो उर्जा, आकास स्वच्छ होने के वजह से सीधा ग्रहों-नक्षत्रों तक पहुंचती है, जो हमें वर्ष भर तक किसी भी तरह के आनेवाले कष्ट से बचाकर रखती है !!
क्योंकि वर्षा ऋतू में आसमान बिलकुल स्वच्छ हो जाता है ! और इस समय की गयी, पूजा-आराधना आदि धार्मिक कृत्य सीधे अपने लक्ष्य तक पहुंचते हैं ! और यही कारण है, कि इस समय दीपावली का शुभागमन होता है, और हमारे लिए, अनंतानंत खुशियों का पैगाम लाता है !!
दीपावली में लक्ष्मी-इंद्र-कुबेर की पूजा की जाती है ! व्यापारी वर्ग के लिए, अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों में, इनकी पूजा किसी वेदज्ञ ब्राह्मण से विधिपूर्वक करवाने चाहिएँ ! व्यापारिक प्रतिष्ठानों में, जिन-जिन उपकरणों का प्रयोग करते हैं, उन सबकी पूजा यथाविधानेन करनी चाहिए !!
फिर अंत में दीप पूजन करके, ज्याद से ज्यादा घी का दीप प्रज्वलित करने चाहिए ! इस प्रकृति, इस ब्रह्माण्ड को सुचारू रूप से संचालित रखने हेतु, घी का दीप, घी का हवन तथा यज्ञ और वनस्पतियों का ही योगदान है ! अगर इन सभी को बंद (नष्ट) कर दिया जाय, तो आज ही प्रलय हो जायेगा !!
पूजा-पाठ हमारे द्वारा किए गए सत्कर्म हैं ! पूजा से भक्ति सिद्ध होती है, पाठ से अपनी एवं कुविचारकों को मानसिक शांति का लाभ होता है ! हवन तथा दीप से प्रकृति संचालित होती है, जो हमारी परम आवश्यकता है !!
शुद्ध घी का दीप एवं हवन हमारे लिए, प्राण शक्ति का उत्पादन करती है ! और इसी प्रकार ऋग्वेद में, ७२ प्रकार की औषधियों का वर्णन है, जिससे हवन का विधान बताया या बनाया गया है ! जो पूर्णतः विज्ञानं एवं वैज्ञानिक अनुसन्धान से भरा हुआ है !!
इसके साथ-साथ ब्रह्मविद्या (वेद) का प्रयोग करके यदि हवन-पूजा-पाठ आदि किया जाय, तो अमेजिन (अकल्पनीय) लाभ होता है ! और इस ब्रह्मविद्या को पूर्णतः जानने के लिए, और सभी बहुत से ज्ञान (विद्या या जानकारी) का त्याग करना पड़ता है !!
अब जो भी व्यक्ति इस विद्या के भरोसे रहता है, उसकी जीविका इसी से निकलनी है ! इसीलिए दान का विधान बनाया गया है ! व्यक्ति को चाहिए, कि अपनी आमदनी का दशांस वर्षभर दान करे, जिससे उसकी आनेवाली पीढ़ी स्वच्छ मानसिकता एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ हो !!
अब अगर आपने वर्षभर की आमदनी से दशांस नहीं निकाला है, तो आपको चाहिए, की दीपावली के समय में, किसी श्रेष्ठ वैष्णव ब्राह्मण को, अपने मूलांक का हजार गुना रूपया दान करे ! जैसे आपका मूलांक है २, तो आपको दो हजार रुपयों का दान किसी ज्ञान (वेद) संचायक, अथवा ज्ञान (वेद) प्रचारक को दान करें !!!
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ऐसा करने से, आपको वर्षभर दशांस न दान करने का भी पूर्ण पुण्य लाभ होता है ! और माता महालक्ष्मी की पूर्ण कृपा का लाभ आपको मिलता है ! इंद्र = प्रकृति का स्वामी, कुबेर = भंडारी, और माता महालक्ष्मी तो जगन्माता हैं ! इन तीनों की पूजा से इंद्र की पूजा से प्रकृति से सहयोग प्राप्त होता है ! कुबेर भंडार खोल देते हैं, और माता महालक्ष्मी की भी पूर्ण कृपा आपपर बरसती है !!!
आप सभी पर लक्ष्मी+नारायण की पूर्ण कृपा हो, शुभ दीपावली !!!
!!!! नमों नारायण !!!!
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