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यज्ञ कर्म की आवश्यकता एवं महत्ता - Yagya Karma ki Aavashyakata & Mahatta.

जय श्रीमन्नारायण,

हमें प्रतिदिन अपने परिवार में यज्ञ करना चाहिए ! क्योंकि यज्ञ में बड़ी शक्ति होती है ! यह सब प्रकार के रोग, शोक आदि को हर लेता है ! किसी प्रकार की व्याधि ऐसे परिवार में नहीं आती, जहाँ प्रतिदिन यज्ञ होता है !!!

जब यज्ञ के पश्चात बड़ों का अभिवादन किया जाता है, तो बड़ों की आत्मा तृप्त हो जाती है ! और तृप्त आत्मा से आशीर्वादों की बौछार निकलती है ! जिससे परिवार में खुशियों की वृद्धि होती है, तथा सुख ,शांति एवं धन ऐश्वर्य बढ़ता है ! परिवार की ख्याति दूर दूर तक फैलती चली जाती है, और दुसरे लोग इस परिवार के अनुगामी बनते है ! इस प्रकार परिवार के यश व कीर्ति में वृद्धि होती है !!!



इस तथ्य को अथर्ववेद में बड़े सुन्दर ढंग से समझाया गया है : -

यदा गार्ह्पत्यमसपर्यैत, पुर्वमग्निं वधुरियम !!
अधा सरस्वत्यै नारि. पित्रिभ्यश्च नमस्कुरु !! अथर्ववेद १४.२..२०

वैसे तो अथर्ववेद का चौदहवाँ कांड, अधिकांशतः गृहस्थ सुख विषयक भाव को ही दर्शाने वाला है ! पर इस मन्त्र के द्वारा घर में आई नव वधु को दिए गए उपदेश को बताया गया है :

(१) प्रतिदिन यज्ञ करना : -

प्रतिदिन यज्ञ करने से व्यक्तिगत शुद्धि तो होती ही है, इसके साथ ही साथ परिवार की शुद्धि भी होती है ! यज्ञ कर्ता के मन से सब प्रकार के संताप दूर हो जाते हैं ! परिवार में किसी के प्रति कटुता है, तो वह दूर हो जाती है ! परिवार में यदि कोई रोग है, तो यज्ञ करने से उस रोग के कीटाणुओं का नाश हो जाता है, तथा रोग उस परिवार में रह नहीं पाता है ! परिजनों में सेवाभाव का उदय होता है, जो सुख शान्ति को बढ़ाने का कारण बनता है ! जहाँ सुख शान्ति होती है, वहां धन ऐश्वर्य की वर्षा होती है ! तथा जहाँ धन ऐश्वर्य है, वहां यश व कीर्ति आ जाती है ! इसलिए प्रत्येक परिवार में प्रतिदिन यज्ञ होना अनिवार्य है !!

जहाँ प्रतिदिन यज्ञ होता है, वहां की वायु शुद्ध रहती है, तथा सात्विक भाव का उस परिवार में उदय होता है ! यह तो सब जानते हैं, कि यज्ञ से वायु मंडल शुद्ध होता है ! शुद्ध वायु में सांस लेने से आक्सीजन विपुल मात्रा में अन्दर जाती है, जो जीवन दायिनी होती है ! शुद्ध वायु में किसी रोग के रोगाणु रह ही नहीं सकते, इस कारण ऐसे परिवार में किसी प्रकार का रोग प्रवेश ही नहीं कर पाता ! पूरा परिवार रोग रहित एवं स्वस्थ रहता है ! स्वस्थ शरीर में कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है ! जब कार्य करने कि क्षमता बढ़ जाती है, तो अधिक मेहनत करने का परिणाम अधिक अर्जन से होता है ! अत: ऐसे परिवार के पास धन की भी वृद्धि होती है, और जहाँ धन अधिक होगा, वहां सुख के साधन भी अधिक होंगे ! जब परिवार में सुख अधिक होंगे तो दान की, गरीबों की सहयता की भी प्रवृति बनेगी ! जिस परिवार में दान की परम्परा होगी, उस का आदर सत्कार सब लोग करेंगे, उस परिवार को सम्मान मिलने लगेगा ! सम्मानित परिवार की यश व कीर्ति स्वयमेव ही दूर दूर तक फ़ैल जाती है ! अत: परिवार में प्रतिदिन यज्ञ करना आवश्यक है !!



जिस परिवार में प्रतिदिन यज्ञ होता है, वहां सात्विक भाव का उदय होता है ! सात्विक भाव के कारण किसी में भी झूठ बोलने, तथा किसी के भी प्रति वैर की भावना रखने, इर्ष्या, द्वेष, वैर विरोध, शराब ,जुआ, मांस आदि के प्रयोग की भावना स्वयमेव ही नष्ट हो जाती है ! यह सब व्यसन जहाँ परिवार के सदस्यों के शरीर में विकृतियाँ पैदा करने वाले होते है, वहीँ सब प्रकार के कलह क्लेश को भी बढ़ाने वाले होते हैं ! जब पारिवार में प्रतिदिन यज्ञ होता है, तो परिवार से इस प्रकार के दोष स्वयमेव ही दूर हो कर सात्विक भावना का विस्तार होता है ! तथा परिवार उन्नति की ओर तेजी से बढ़ने लगता है ! उन्नत परिवार की ख्याति के कारण लोग इस परिवार के अनुगामी बनने का यत्न करते है ! और इससे परिवार के यश व कीर्ति में वृद्धि होती है ! इसलिए भी प्रतिदिन यज्ञ अवश्य करना आवश्यक है !!

यज्ञ करने से ह्रदय शुद्ध हो जाता है, शुद्ध ह्रदय होने से मन को भी शान्ति मिलती है ! जब मन शांत हो, तो परिवार में भी सौम्यता की भावना का उदय होता है ! ऐसे परिवार में कभी भी किसी प्रकार का द्वेष नहीं होता, किसी प्रकार की कलह नहीं होती ! जो समय अनेक परिवारों में लड़ाई झगड़े में निकलता है, ऐसे परिवारों को चाहिए, कि उस समय को बचा कर निर्माणात्मक कार्यों में लगायें ! जिस से इस परिवार की आय में वृद्धि हो, तथा जो धन रोग पर अपव्यय होता है, वह भी बच जाए ! तथा इस परिवार के धन में अपार वृद्धि होने से, सभी परिवार ऐसो आराम, और निश्चिन्तता का जीवन यापन कर सके ।।।

एक आपके ऐसा करने से, यह आपके पड़ोस से शुरू होकर दूर-दूर तक, चर्चा का विषय बन जाता है, तथा अनेक परिवारों को मार्गदर्शन करता है ! अत: हमें अपने से ही शुरुआत करनी चाहिए, प्रतिदिन यज्ञ करना ! जिसके परिणाम स्वरूप आप देखेंगें, की प्रतिदिन यज्ञ करने की परंपरा सम्पूर्ण मनुष्य समाज में निकल पड़ेगी ! और इसका पूरा श्रेय आपको जायेगा, प्रकृति स्वच्छ, एवं वातावरण शुद्ध तथा निर्मल होगा, जिसमे जीवन आसान होगा ! जिस प्रकार प्रतिदिन दोनों समय भोजन करने की परम्परा है, आवश्यकता है ! वैसे ही यज्ञ करने की भी परंपरा शास्त्रोक्त विधि है, जिसे हम अपने स्वार्थ वश भूल चुके हैं ! अत: इसे हमें अपने आदत में लाना होगा, और जिस दिन यज्ञ न हो, उस दिन ऐसा अनुभव करें, जैसे कि हमारा कुछ खो गया है ! जब इस प्रकार के विचार होंगे, तो हम निश्चय ही प्रतिदिन दो काल यज्ञ किये बिना रह ही नहीं सकेंगे !!

(२) यज्ञ के पश्चात बड़ों का अभिवादन करना : -
मन्त्र का दूसरा भाग कहता है, कि हमें यज्ञोपरांत अपने बड़ों को प्रणाम करना चाहिए ! जहाँ अपने से बड़े लोगों को प्रणाम करना, ज्येष्ठ परिजनों का अभिवादनादी करने से परिवार में विनम्रता कि भावना आती है ! वहां इससे सुशीलता का भी परिचय मिलता है ! जब हम हाथ जोड़ कर किसी के सम्मुख नतमस्तक होते हैं, तो निश्चय ही हम उसके प्रति नम्र होते है ! इस से सपष्ट होता है, कि हम उसके प्रति आदर सत्कार की भावना रखते हैं ! और यही शिष्टता तथा विनय उन्नति का मार्ग है ।।।

अत: जिस परिवार में जितनी अधिक शिष्टता व विनम्रता होती है, वह परिवार उतना ही उन्नत होता है ! इस का कारण है, कि जिस परिवार में शिष्टाचार का ध्यान रखा जाता है, उस परिवार में कभी किसी भी प्रकार का लड़ाई झगडा, कलह क्लेश आ ही नहीं सकता ! किसी परिजन के प्रति द्वेष कि भावना का तो प्रश्न ही नहीं होता ! जहाँ यह सब दुर्भावनाएं नहीं होती, उस परिवार की सुख समृद्धि को कोई हस्तगत नहीं कर सकता ! ऐसे स्थान पर धन एश्वर्य की वर्षा होना अनिवार्य है ! जब सुखों के साधन बढ़ जाते हैं, तो दान तथा दान से ख्याति नित्य ही बढ़ने लगता है ! अत: उन्नति व श्रीवृद्धि के साथ ऐसे परिवार का सम्मान भी बढ़ता है ! इसलिए इस सर्वोतम वशीकरण मन्त्र को पाने के लिए भी परिवार में प्रतिदिन यज्ञ का होना आवश्यक है !!

जब हम किसी व्यक्ति को प्रणाम करते हैं, तो उस व्यक्ति का ह्रदय द्रवित हो उठता है ! द्रवित ह्रदय से प्रणाम करने वाले व्यक्ति के लिए अनायास ही शुभ आशीर्वाद के वचन ह्रदय से निकलते हैं ! यदि कोई व्यक्ति अपने परिवार के किसी व्यक्ति के प्रति किंचित सा द्वेष भी मन में संजोये है, तो प्रणाम मिलते ही वह धुल जाता है, तथा उसका हाथ उसे आशीर्वाद देने के लिए, स्वयमेव ही आगे आ जाता है ! इस प्रकार परिवार के सदस्यों का मन मालिन्य धुल जाता है, तथा ह्रिदय शुद्ध हो जाता है ! परिवार से द्वेष भावना भाग जाती है, तथा मिलाप की भावना बढाती है ! मनुस्मृति में भी अभिवादन के कुछ फल बताये गए हैं, जो इस प्रकार की है ।।।


मनुस्मृति में कहा है की :-
अभिवादनशिलस्य, नित्यं वृद्धोपसेविन: !!
चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशोबलम !! मनुस्मृति २.१२१


यज्ञ और वनस्पतियाँ, यही दो ऐसे हैं, जो प्रकृति को गति दे सकते हैं ! अत: हमें अपने व्यस्ततम जीवन में से समय निकालकर बड़े से बड़े यज्ञ का आयोजन करवाना चाहिए ! जिससे प्रकृति सुचारुरूप से संचालित रहे, और हम अपना जीवन सुखपूर्वक यापन कर सकें ! अगर ऐसा न हो सके तो नित्य होम, जिसका उपर मैंने वर्णन किया अवश्य करना चाहिए ! और अगर नित्य होम सम्भव न हो, तो बड़े यज्ञों के आयोजन करवाने चाहिएँ, अथवा करवाने वालों को सहयोग करना चाहिए ।।।

http://www.swamidhananjaymaharaj.com/index.php
http://balajivedvidyalaya.org/index2.php
http://swamishridhananjayjimaharaj.blogspot.in/
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जब हम प्रकृति से हर वस्तु सहज ही प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं, तो इस प्रकृति के सिंचन में भी हमें अपनी सहजता एवं उदारता का प्रदर्शन करना चाहिए, अन्यथा ये हमारे भाग्य को कम करते-करते एक दिन भाग्यहीन बना देते हैं, और हमारी सारी सुख समृद्धि सहज ही चली जाती है ! अत: यज्ञ जो हमें सब प्रकार के रोगों से मुक्त रखता है, सकारात्मक उर्जा प्रदान करता है, और भाग्यवान बनाता है, हमें अवश्य ही इसका आयोजन पुरे तन, मन और धन से करना करवाना चाहिए ।।।

नारायण आप सभी का नित्य कल्याण करें ।।।

।।। नमों नारायण ।।।

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