आज के तथाकथित संत और पाखण्ड ? Today's so-called Sant & Hypocrisy?
Swami Shri Dhananjay Ji Maharaj.
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जय श्रीमन्नारायण,
हन्तास्मिञ्जन्मनि भवान्मा मां द्रष्टुमिहार्हति !!
अविपक्वकषायाणां दुर्दर्शोऽहं कुयोगिनाम् !! 22 !!
अर्थ:- भगवान ने कहा - हे नारद ! मुझे खेद है, कि इस जन्म में तुम मेरा दर्शन नहीं कर सकोगे। क्योंकि जिनकी वासनाएँ पूर्णतया शान्त नहीं हो गयीं हैं, उन अधकचरे योगियों को मेरा दर्शन अत्यन्त दुर्लभ है ।।22।।
जब भगवान ने स्वयं नारद जी के लिए भागवत मे ऐसी बात कही है, तो आज तो केवल जुबानी योगी ही दिखते है ! फिर ऐसे योगियों से क्या उम्मीद है ?
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आज जिसे भी योगी बनना हो, वो ब्राह्मणों कि बुराई करे, और कर्मकाण्ड को पाखंड कहे ! और ये कहना भी शुरू करे, कि सिद्धियाँ माया है, और उलझा देती है ! भगवान कि भक्ति करो, क्योंकि भक्ति कामधेनु है, और कर्मकाण्ड छेरी ! तो कामधेनु को छोड़ी के छेरी कौन दुहावै ?
बश इस तरह कि बातें ही केवल आपको महामण्डलेश्वर कि उपाधि से विभूषित कर देंगी ! क्योंकि इसमें तथाकथित योगियों का भी कोई दोष नहीं नजर आता ! क्योंकि हम सब का नजरिया उसी तरह का है ! हम केवल जादू कि छड़ी जैसा कुछ चाहते हैं, जिसका वर्णन शास्त्रों मे संतों के लिए है !!
अब हमारी सोंच ही कुछ इस प्रकार कि बनी हुई है, कि कोई संत का दर्शन ही हमें मुक्ति दे देगी ! लेकिन ये भूल जाते हैं, कि कर्म भी कोई चीज होती है !!
जिस कृष्ण ने गोवर्धन उठकर इन्द्र का मान भंग किया, उसी कृष्ण ने पाण्डवों से कई जगह इन्द्र कि उपासना करवाई ! क्योंकि बिना इन्द्र कि उपासना के प्रकृति का संचालन सुलभ नहीं है ! क्योंकि इन्द्र के रूप में भी वही है, और वो एक अहम पोस्ट है, जिसकी उपासना के बिना स्वयं भगवान भी कुछ नहीं दे सकता !!!!
क्योंकि उसकी उपासना से आपके कर्म सत्कर्म बन जाते हैं, और आप उस फल के अधिकारी बन पाते हैं, जिसके फल स्वरूप आपको आपके इच्छानुसार फल प्राप्त हो पाता है !!!!
कर्मण्येवाधिकारस्ते = हे मनुष्य ! सिर्फ और सिर्फ कर्म करना ही तेरे अधिकार क्षेत्र मे है, जिसके अनुसार तेरे भाग्य अथवा शुभाशुभ फल का निर्धारण होता है !!!!
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!!!!! नमों नारायण !!!!!!
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