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'विद्यावतां भागवते परीक्षा' । Sansthanam.

जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, भागवत विद्वत्ता की कसौटी है यथा -'विद्यावतां भागवते परीक्षा' । इसी कारण टीकासंपत्ति की दृष्टि से भी यह अतुलनीय है । विभिन्न वैष्णव संप्रदाय के विद्वानों ने अपने विशिष्ट मत की उपपत्ति तथा परिपुष्टि के निमित्त भागवत के ऊपर स्वसिद्धांतानुयायी व्याख्याओं का प्रणयन किया है ।।

मित्रों, कुछ टीकाकारों जिनके विषय में हमने पढ़ा और जाना है, उन कुछेक टीकाकारों का  नाम और संक्षिप्त परिचय बताने का प्रयत्न करता हूँ । अगर आपलोगों में से की विद्वानजन को और किसी के विषय में अधिक ज्ञात हो तो हमें भी अवश्य बताएँगे ।।


१.श्रीधर स्वामी (भावार्थ दीपिका; 13वीं सदी, भागवत के सबसे प्रख्यात व्याखाकार), हमारे काशी नरसिम्ह मन्दिर के पुजारी ।।

२.सुदर्शन सूरि (14वीं सदी, की शुकपक्षीया व्याख्या विशिष्टाद्वैतमतानुसारिणी है) हमारे रामानुज श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के प्रसिद्द आचार्य ।।

३.सन्त एकनाथ (एकनाथी भागवत; १६ वी सदी मे मराठी भाषा की उत्तम रचना) ।।

४.विजय ध्वज (पदरत्नावली 16वीं शती; माध्वमतानुयायी), मध्वाचार्य जी के द्वारा प्रचलित माध्व सम्प्रदाय के प्रसिद्द आचार्य ।।

५.वल्लभाचार्य (सुबोधिनी 16वीं श., शुद्धाद्वैतवादी) इनको तो आप सभी भी जानते ही होंगे, वृन्दावन के प्रसिद्द वैष्णव संत तथा वल्लभ मत के आद्य प्रवर्तक ।।

६.शुदेवाचार्य (सिद्धांतप्रदीप, निबार्कमतानुयायी) निम्बार्क सम्प्रदाय के प्रसिद्द आचार्य ।।

७.सनातन गोस्वामी (बृहदैवैष्णवताषिणी), जीव गोस्वामी जी जिन्होंने क्रमसंदर्भ और दुसरे एक जिन्होंने षट्सन्दर्भ लिखा है, जिनके बारे में मुझे विशेष जानकारी तो नहीं है लेकिन वो भी हमारे रामानुज श्रीवैष्णव मतावलम्बी ही थे ।।

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भगवान नारायण और माता महालक्ष्मी सभी को सद्बुद्धि दें ।।

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जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् ।।

।। नमों नारायण ।।

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