Vidur Neeti
विदुर-नीति :--
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इन दो को भूमि निगल जाती है ।
"द्वाविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिव ।
राजानं चाsविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम् ।।"
(विदुर-नीति-1.53) (महाभारत-उद्योगपर्व-विदुर-प्रजागर)
अर्थः---जैसे सर्प बिल में रहने वाले चूहों को निगल जाता है, वैसे ही यह भूमि इन दो को निगल जाती हैः--
(1.) विरोध न करने वाले राजा को ।।
(2.) प्रवास (यात्रा) न करने वाले ब्राह्मण को ।।
राजा यदि आक्रान्ता (शत्रु, आतंकी) आदि का विरोध न करे तो वह राज्य गवाँ बैठेगा। उसकी भूमि उसके हाथ से जाती रहेगी । यही निगलना है । राजा का यह परम कर्त्तव्य है कि वह शत्रु से राज्य की रक्षा करे और सम्भव हो तो शत्रु को नष्ट कर डाले, अपनी प्रजा की सुरक्षा करना राजा का परम धर्म माना गया है ।।
ब्राह्मण यदि प्रवास (दूर देश की यात्रा) नहीं करेगा तो न उसकी विद्या बढेगी और न उसकी कीर्ति ही फैलेगी ।।
दूर देश की यात्रा करने से वहाँ के रहन-सहन और अन्य प्रकार की जानकारियाँ मिलती है, जिसका उपयोग वह अपने प्रवचनों, उपदेशों में दृष्टान्त के रूप में कर सकता है । यदि वह यात्रा नहीं करेगा तो उसकी बुद्धि कुण्ठित हो जाएगी, यही उसका निगलना है ।।
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इन दो को भूमि निगल जाती है ।
"द्वाविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिव ।
राजानं चाsविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम् ।।"
(विदुर-नीति-1.53) (महाभारत-उद्योगपर्व-विदुर-प्रजागर)
अर्थः---जैसे सर्प बिल में रहने वाले चूहों को निगल जाता है, वैसे ही यह भूमि इन दो को निगल जाती हैः--
(1.) विरोध न करने वाले राजा को ।।
(2.) प्रवास (यात्रा) न करने वाले ब्राह्मण को ।।
राजा यदि आक्रान्ता (शत्रु, आतंकी) आदि का विरोध न करे तो वह राज्य गवाँ बैठेगा। उसकी भूमि उसके हाथ से जाती रहेगी । यही निगलना है । राजा का यह परम कर्त्तव्य है कि वह शत्रु से राज्य की रक्षा करे और सम्भव हो तो शत्रु को नष्ट कर डाले, अपनी प्रजा की सुरक्षा करना राजा का परम धर्म माना गया है ।।
ब्राह्मण यदि प्रवास (दूर देश की यात्रा) नहीं करेगा तो न उसकी विद्या बढेगी और न उसकी कीर्ति ही फैलेगी ।।
दूर देश की यात्रा करने से वहाँ के रहन-सहन और अन्य प्रकार की जानकारियाँ मिलती है, जिसका उपयोग वह अपने प्रवचनों, उपदेशों में दृष्टान्त के रूप में कर सकता है । यदि वह यात्रा नहीं करेगा तो उसकी बुद्धि कुण्ठित हो जाएगी, यही उसका निगलना है ।।
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