Adhyatmika vichara. आध्यात्मिक विचार ।। Sansthanam. Silvassa.
Adhyatmika vichara. आध्यात्मिक विचार ।। Sansthanam. Silvassa.
श्रुत्वा धर्मम्विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम् ।।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात् ।। (चाणक्य नीति)
अर्थ:- धर्मका श्रवण करनेसे जानकारी मिलती है, धर्मके ज्ञानसे कुमति दूर होती है, धर्मका चिंतन करनेसे अज्ञानता दूर होती है और धर्मका अध्ययन करनेसे मोक्ष मिलता है ।।
तमसो लक्षणं कामो रजसत्त्वर्थ उच्यते ।।
सत्त्वस्य लक्षणम् धर्मः श्रैष्ठ्यमेषां यथोत्तरम् ।। (मनुस्मृति)
अर्थ:- कामवासना को तमोगुणका, अर्थ को रजोगुण का तथा धर्माचरण को सत्त्व गुण का लक्षण कहा गया है । तमोगुण की अपेक्षा रजोगुण एवं रजोगुण की अपेक्षा सत्त्वगुण उत्तम है ।।
दुर्लभम् त्रैमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकं ।।
मनुष्यत्वम् मुमुक्षत्वम् महापुरुषसंश्रय ।। (विवेकचूडामणि)
अर्थ:- तीन बातों का एक साथ होना दुर्लभ है एवं बड़े पुण्यों के प्रताप से मिलता है, १. मनुष्य योनि का प्राप्त होना । २. मुमुक्षु का होना । ३. संत का सनिध्य, मार्गदर्शन एवं कृपा मिलना ।।
सत्संग का महत्व क्या है ? एक संतने कहा है -
सतसंगत को जाईये, तज मोह अभिमान ।।
ज्यों ज्यों पग आगे बढे, कोटि यज्ञ सामान ।।
अर्थ:- सत्संग की ओर बढनेवाले प्रत्येक कदम से कोटि-कोटि यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है ।।
श्रुत्वा धर्मम्विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम् ।।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात् ।। (चाणक्य नीति)
अर्थ:- धर्मका श्रवण करनेसे जानकारी मिलती है, धर्मके ज्ञानसे कुमति दूर होती है, धर्मका चिंतन करनेसे अज्ञानता दूर होती है और धर्मका अध्ययन करनेसे मोक्ष मिलता है ।।
तमसो लक्षणं कामो रजसत्त्वर्थ उच्यते ।।
सत्त्वस्य लक्षणम् धर्मः श्रैष्ठ्यमेषां यथोत्तरम् ।। (मनुस्मृति)
अर्थ:- कामवासना को तमोगुणका, अर्थ को रजोगुण का तथा धर्माचरण को सत्त्व गुण का लक्षण कहा गया है । तमोगुण की अपेक्षा रजोगुण एवं रजोगुण की अपेक्षा सत्त्वगुण उत्तम है ।।
दुर्लभम् त्रैमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकं ।।
मनुष्यत्वम् मुमुक्षत्वम् महापुरुषसंश्रय ।। (विवेकचूडामणि)
अर्थ:- तीन बातों का एक साथ होना दुर्लभ है एवं बड़े पुण्यों के प्रताप से मिलता है, १. मनुष्य योनि का प्राप्त होना । २. मुमुक्षु का होना । ३. संत का सनिध्य, मार्गदर्शन एवं कृपा मिलना ।।
सत्संग का महत्व क्या है ? एक संतने कहा है -
सतसंगत को जाईये, तज मोह अभिमान ।।
ज्यों ज्यों पग आगे बढे, कोटि यज्ञ सामान ।।
अर्थ:- सत्संग की ओर बढनेवाले प्रत्येक कदम से कोटि-कोटि यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है ।।
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