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मोहन क्या अपराध हमारा जो इतना तुम सताते हो ।।

मोहन  क्या अपराध हमारा जो इतना तुम सताते हो ।। mohan Kya Aparadh Hamara Jo Tum Itana Satate Ho.
जय श्रीमन्नारायण,


              प्यारे कन्हैया,

मोहन क्या अपराध हमारा जो इतना तुम सताते हो
अपनी इक झलक के लिए जन्मो से हमे तड़पाते हो

बंसी की मधुर धुन से रागिनियों को बजाते हो
अपनी बंसी की धुन बजा हमे पागल बनाते हो
बंसी को भी तुम अधरामृत पिलाते हो

... ...उसे होंठो से छूकर उसे धन्य बनाते हो
और हमको तुम चरणों से भी क्यों दूर बिठाते हो

हमारा दिल छीन कर क्यों यूँ मुस्कराते हो
हमारे सजल नेत्रों से अश्रु जल गिराते हो

मोहन मेरे मन में समा जाओ
मोहे ना इतना सताओ..



Kyon itana satate ho mohan

क्योंकि प्यारे आपके बिना हमारा कोई आस्तित्व ही नहीं बचता ।।


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जय जय श्री राधे ।।
जय श्रीमन्नारायण ।।

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